भारत के पुस्तक मेले: संस्कृति और जुड़ाव

CHAIFRY POT

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7/4/20251 min read

2025 का भारत एक ऐसी दुनिया में जी रहा है, जहाँ कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) ने हमारे दैनिक जीवन को एक जादुई छड़ी की तरह बदल दिया है। डिजिटल स्क्रीनें, एल्गोरिदम और चैटबॉट्स हमारे संवाद, सोच और यहाँ तक कि सपनों को भी आकार दे रहे हैं। फिर भी, इस चकाचौंध भरी तकनीकी दुनिया में, पुस्तक मेलों, उनके रंग-बिरंगे स्टॉलों और पुस्तक प्रेमियों का जुनून एक ऐसी रोशनी की तरह चमकता है, जो समय और तकनीक की सीमाओं को पार करता है। कोलकाता पुस्तक मेला, चेन्नई अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेला, जयपुर साहित्य महोत्सव और नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला जैसे आयोजन न केवल साहित्यिक उत्सव हैं, बल्कि वे एक ऐसी दुनिया के प्रवेश द्वार हैं, जहाँ कहानियाँ, विचार और संस्कृति जीवंत हो उठते हैं। ये मेले किताबों की सुगंध, पन्नों के स्पर्श और साहित्यिक संवादों की गर्मजोशी से भरे हुए हैं, जो डिजिटल स्क्रीन की ठंडी चमक कभी प्रदान नहीं कर सकती।

यह लेख भारत में पुस्तक मेलों, उनके स्टॉलों और उन पुस्तक प्रेमियों की कहानी बुनता है, जो इन आयोजनों को एक सांस्कृतिक महाकुंभ में बदल देते हैं। नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2025 सहित अन्य प्रमुख मेलों के अवलोकनों, साहित्यिक अंतर्दृष्टि और एआई के युग में सांस्कृतिक प्रभावों की गहरी समझ पर आधारित है। यह न केवल जानकारीपूर्ण है, बल्कि रोचक और प्रेरणादायक भी है, ताकि पाठक साहित्य और प्रौद्योगिकी के इस अनूठे संगम में खो जाएँ।

पुस्तक मेलें: साहित्य और संस्कृति का जीवंत उत्सव

भारत में पुस्तक मेलों की परंपरा किसी तीर्थयात्रा से कम नहीं है। ये मेले केवल पुस्तकों की बिक्री के स्थान नहीं हैं; ये विचारों का बाजार, कहानियों का मेला और संस्कृति का उत्सव हैं। कोलकाता पुस्तक मेला, जो हर साल जनवरी-फरवरी में बोई मेला मैदान में आयोजित होता है, दुनिया का सबसे बड़ा गैर-व्यावसायिक पुस्तक मेला है। 2025 में इसने “साहित्य और समरसता” की थीम के साथ लाखों आगंतुकों को आकर्षित किया, जिसमें बंगाली साहित्य के साथ-साथ हिंदी, अंग्रेजी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की पुस्तकें प्रदर्शित हुईं। चेन्नई अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेला (जनवरी 2025) ने तमिल साहित्य और दक्षिण भारतीय संस्कृति को केंद्र में रखा, जबकि जयपुर साहित्य महोत्सव (जनवरी 2025) ने वैश्विक और भारतीय लेखकों को एक मंच पर लाकर साहित्यिक संवाद को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।

लेकिन इन सबके बीच, नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2025 एक चमकता सितारा है। 1 से 9 फरवरी तक प्रगति मैदान के भारत मंडपम में आयोजित, यह मेला नेशनल बुक ट्रस्ट (एनबीटी) और भारत व्यापार संवर्धन संगठन (आईटीपीओ) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया। इसने 20 लाख से अधिक आगंतुकों को आकर्षित किया, जो साहित्य के प्रति भारत के अटूट प्रेम का प्रमाण है। थीम “हम भारत के लोग” भारतीय संविधान की 75वीं वर्षगाँठ को समर्पित थी, और मेले में 2000 से अधिक स्टॉलों पर 20,000 से अधिक पुस्तकें प्रदर्शित की गईं। ब्लूम्सबरी, पेंगुइन, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस और राजकमल प्रकाशन जैसे प्रकाशकों के स्टॉलों पर नई किताबों की सुगंध और पाठकों की उत्साहित भीड़ ने माहौल को जादुई बना दिया।

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में कुछ रोचक पहलू भी थे। उदाहरण के लिए, “नई दिल्ली राइट्स टेबल” (एनडीआरटी) 3 और 4 फरवरी को आयोजित की गई, जो बी2बी मिलान और कॉपीराइट हस्तांतरण के लिए एक अनूठा मंच था। यहाँ प्रकाशकों ने अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के साथ सौदे किए, जिससे भारतीय साहित्य को वैश्विक मंच पर ले जाने में मदद मिली। थीम मंडप (हॉल 5) में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन, अहमदाबाद द्वारा डिज़ाइन किए गए प्रदर्शन और वृत्तचित्रों ने भारतीय गणतंत्र की भावना को जीवंत किया। एक और रोचक तथ्य यह था कि मेले में “लिटरेरी लाउंज” में 75 युवा लेखकों ने हिस्सा लिया, जिनमें से कई पहली बार अपनी पुस्तकें लॉन्च कर रहे थे। यह नई प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने का एक शानदार उदाहरण था।

इसके अलावा, मेले में एक विशेष स्टॉल था, जहाँ 1970 के दशक की दुर्लभ हस्तलिखित पांडुलिपियाँ प्रदर्शित की गईं, जिनमें से कुछ स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी थीं। यह स्टॉल इतिहास और साहित्य प्रेमियों के लिए एक खजाना था, और कई आगंतुकों ने इन पांडुलिपियों को देखकर भारत की साहित्यिक और ऐतिहासिक विरासत पर गर्व महसूस किया। अंतरराष्ट्रीय मंडप (हॉल 4) में रूस की साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित किया गया, जिसमें दोस्तोएव्स्की और टॉल्स्टॉय की कालजयी कृतियों के नए अनुवादों ने पाठकों का ध्यान खींचा।

पुस्तक प्रेमी: साहित्य का दिल और आत्मा

पुस्तक मेले केवल किताबों के बारे में नहीं हैं; वे उन लोगों के बारे में हैं, जो इन किताबों को जीवंत करते हैं। पुस्तक प्रेमी—चाहे वे उत्साहित बच्चे हों, जिज्ञासु युवा हों या अनुभवी पाठक—इन मेलों का असली जादू हैं। कोलकाता में “लेखक मंच” पर लेखकों और पाठकों की गर्मजोशी भरी बातचीत, जयपुर में “राइटर्स रिट्रीट” में लेखकों के बीच बौद्धिक संवाद, और चेन्नई में “बाल साहित्य मंच” पर बच्चों की चहक, इन मेलों को एक जीवंत समुदाय में बदल देते हैं।

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2025 में पुस्तक प्रेमियों की भीड़ ने एक अनोखा माहौल बनाया। युवा कॉर्नर में 75 उभरते लेखकों ने अपनी रचनाएँ साझा कीं, जिनमें से कई ने अपनी पहली किताब लॉन्च की। एक रोचक किस्सा यह था कि एक 19 वर्षीय लेखिका ने अपनी कविता संग्रह शब्दों का समंदर लॉन्च किया, जिसे देखने के लिए सैकड़ों युवा पाठक उमड़ पड़े। लेखक कोने में लेखक मासिजीवी की पुस्तक लुक अराउंड का विमोचन एक ऐसी घटना थी, जिसने पाठकों को लेखक के साथ गहरे संवाद में बाँध लिया।

बच्चों का मंडप (हॉल 6) मेले का सबसे रंगीन हिस्सा था। यहाँ चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट (सीबीटी) ने कहानी सुनाने की कार्यशालाएँ, कठपुतली शो और साहित्यिक क्विज़ आयोजित किए, जो बच्चों और उनके माता-पिता के लिए आकर्षण का केंद्र बने। सीबीटी ने यह भी घोषणा की कि वे दिल्ली में 20,000 वर्ग फुट का “शंकर इंटरनेशनल चिल्ड्रन्स सेंटर” लॉन्च करेंगे, जो बच्चों के बीच साहित्य और कला को बढ़ावा देगा। एक और रोचक पहल थी “पढ़ने का उत्सव”, जिसमें स्कूली बच्चों ने अपनी पसंदीदा किताबों पर आधारित नाटक प्रस्तुत किए।

ये गतिविधियाँ पुस्तक मेलों को एक सामुदायिक उत्सव में बदल देती हैं। यहाँ पाठक न केवल किताबें खरीदते हैं, बल्कि विचारों, अनुभवों और सपनों का आदान-प्रदान करते हैं। डिजिटल युग में, जहाँ लोग स्क्रीन पर खोए रहते हैं, ये मेले एक ऐसी जगह प्रदान करते हैं, जहाँ मानवीय जुड़ाव और साहित्यिक जुनून जीवंत हो उठता है।

एआई के युग में पुस्तकों का जादू

2025 में, एआई ने हमारे जीवन को एक साइंस-फिक्शन कहानी की तरह बदल दिया है। यह किताबें लिख सकता है, कविताएँ बना सकता है और यहाँ तक कि कहानियाँ सुना सकता है। लेकिन पुस्तकों का जादू कुछ और है। जैसा कि एरिका स्वायलर ने अपनी पुस्तक वी लिव्ड ऑन द होराइजन में लिखा है, एआई में वह मानवीय “आवाज़” नहीं है, जो किसी लेखक के अनुभव, भावनाओं और सपनों से आती है। पुस्तकें एक ऐसी दुनिया में ले जाती हैं, जहाँ पाठक लेखक के दिल और दिमाग से सीधे जुड़ सकता है, बिना किसी डिजिटल फ़िल्टर के।

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में यह जादू हर स्टॉल पर बिखरा हुआ था। एक स्टॉल पर, एक बुजुर्ग लेखक अपनी आत्मकथा जीवन के रंग साझा कर रहे थे, जिसमें उन्होंने अपने गाँव से दिल्ली तक की यात्रा को शब्दों में पिरोया था। पाठकों की आँखों में चमक और लेखक की आवाज़ में गर्माहट ने उस पल को अविस्मरणीय बना दिया। यह वह अनुभव है, जो कोई एआई चैटबॉट कभी नहीं दे सकता।

पुस्तक मेले डिजिटल युग को समझने में भी मदद करते हैं। द कल्चर ऑफ एआई और एआई एंड ह्यूमनिटी जैसी किताबें, जो नई दिल्ली मेले में खूब बिकीं, पाठकों को एआई के सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभावों को समझने में मदद करती हैं। राजकमल प्रकाशन के स्टॉल पर नॉन-फिक्शन किताबों की बिक्री में 30% की वृद्धि देखी गई, जो यह दर्शाता है कि पाठक गंभीर और विचारोत्तेजक सामग्री की तलाश में हैं।

सांस्कृतिक आदान-प्रदान का जीवंत मंच

पुस्तक मेले भारत की सांस्कृतिक विविधता का एक रंगीन चित्र प्रस्तुत करते हैं। कोलकाता में बंगाली साहित्य की गहराई, चेन्नई में तमिल साहित्य की समृद्धि, और जयपुर में वैश्विक साहित्य की चमक, इन मेलों को एक सांस्कृतिक मोज़ेक बनाती है। नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2025 में, 20 भाषाओं में पुस्तकें उपलब्ध थीं, जिसमें हिंदी, अंग्रेजी, क्षेत्रीय भाषाएँ और ब्रेल लिपि शामिल थीं। नई दिल्ली मेले में एक विशेष स्टॉल ने ब्रेल में रामचरितमानस और गीता जैसे ग्रंथ प्रदर्शित किए, जो सामाजिक समावेश को बढ़ावा देने का एक शानदार उदाहरण था।

जयपुर साहित्य महोत्सव में वैश्विक लेखकों, जैसे नाइजीरियाई लेखक चिमामांडा न्गोज़ी अदिची और फ्रांसीसी लेखक लेला स्लिमानी, ने भारतीय पाठकों के साथ अपने अनुभव साझा किए। कोलकाता मेले में लैटिन अमेरिकी साहित्य पर एक विशेष सत्र था, जिसमें गैब्रियल गार्सिया मार्क्वेज़ की वन हंड्रेड इयर्स ऑफ सॉलिट्यूड के नए अनुवाद की चर्चा हुई। नई दिल्ली मेले में रूस के साहित्यिक मंडप ने दोस्तोएव्स्की की क्राइम एंड पनिशमेंट के एक नए हिंदी अनुवाद को लॉन्च किया, जो पाठकों के बीच खूब चर्चा में रहा।

ये सांस्कृतिक आदान-प्रदान केवल मनोरंजन नहीं हैं; ये सहानुभूति और समझ को बढ़ावा देते हैं। एक ऐसी दुनिया में, जहाँ एआई अक्सर सांस्कृतिक बारीकियों को नजरअंदाज कर देता है, पुस्तक मेले भारत की समृद्ध विरासत को नई पीढ़ियों तक पहुँचाते हैं।

शैक्षिक मूल्य और सामाजिक प्रभाव

पुस्तक मेले शैक्षिक मंच भी हैं। नई दिल्ली मेले में बच्चों के मंडप में आयोजित कहानी सुनाने की कार्यशालाएँ और क्विज़ ने युवा पाठकों में साहित्य के प्रति प्रेम जगाया। जयपुर और कोलकाता में “साहित्य और समाज” जैसे सत्रों ने सामाजिक मुद्दों पर गहरी चर्चा को प्रेरित किया। नई दिल्ली मेले में दिव्यांगता: चुनौतियों से अवसर तक जैसी किताबों का मुफ्त वितरण सामाजिक समावेश को बढ़ावा देता है।

रामगढ़ और पटना जैसे छोटे शहरों में आयोजित जिला स्तरीय मेलों ने भी स्थानीय स्तर पर पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा दिया। इन मेलों ने स्कूलों और कॉलेजों को अपने पुस्तकालयों में नई किताबें शामिल करने के लिए प्रेरित किया, जिससे छात्रों को वैश्विक दृष्टिकोण मिला।