जलवायु चुनौतियाँ: कैसे मौसम बच्चों की शिक्षा और जीवन की दिशा को बदल रहा है

WEB'S ON FIRE

Chaifry

5/19/20251 min read

जलवायु चुनौतियाँ: कैसे मौसम बच्चों की शिक्षा और जीवन की दिशा कर रहा है

आकाश उबल रहा है और धरती काँप रही है। जलवायु परिवर्तन से तीव्र हो चुके मौसमी चरम—लू, बाढ़, सूखा, तूफान—दुनियाभर में बच्चों की शिक्षा पर गहरा संकट ला रहे हैं। ये घटनाएँ स्कूलों को बंद करवाती हैं, मानसिक विकास को रोकती हैं, और बच्चों के भविष्य को अनिश्चितता की ओर धकेलती हैं। यह लेख हाल के अध्ययनों के आधार पर जाँचता है कि कैसे मौसम बच्चों की पढ़ाई, ज्ञान प्राप्ति, और जीवन के रास्तों को प्रभावित करता है। सीधे व्यवधानों, अप्रत्यक्ष तनावों, मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों, लैंगिक असमानताओं, और दीर्घकालिक नतीजों का विश्लेषण करते हुए, हम समझेंगे कि जलवायु न सिर्फ़ शैक्षणिक परिणामों बल्कि बच्चों के विकास की धारा को कैसे मोड़ती है। साथ ही, हम समाधान सुझाएँगे और इस मुद्दे को गहराई से समझने के लिए किताबों की एक सूची भी साझा करेंगे।

सीधा प्रभाव: गर्मी, तूफान, और बंद स्कूल

चरम मौसमी घटनाएँ स्कूलों को पहुँच से बाहर या रहने लायक नहीं छोड़तीं। ग्लोबल वार्मिंग से बढ़ती लू कक्षाओं को भट्टी बना देती है, जिससे बच्चों की सीखने की क्षमता घटती है। 2024 के एक अध्ययन के अनुसार, 26°C से अधिक तापमान वाले दिनों में अमेरिकी किशोरों के गणित के अंक गिर गए, जबकि चीन में गर्म दिनों ने तीन महीने की पढ़ाई जैसा नुकसान पहुँचाया (रैंडेल और ग्रे, 2024)। 2024 में, बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशों ने 47°C तापमान पर स्कूल बंद किए, जिससे 11.8 करोड़ छात्र प्रभावित हुए (यूनिसेफ, 2025)। लगातार गर्मी के संपर्क में आने से शैक्षणिक प्रदर्शन कमजोर होता है, और इसका असर वयस्कता तक रहता है (रैंडेल और ग्रे, 2019)।

तूफान और बाढ़ इन चुनौतियों को और बढ़ाते हैं। 2019 में मोज़ाम्बिक में चक्रवात इडाई ने 3,400 कक्षाएँ नष्ट कीं, जिससे 3.05 लाख बच्चे शिक्षा से वंचित रह गए (यूनेस्को, 2024)। 2024 में, 85 देशों के 24.2 करोड़ छात्रों को स्कूल बंद होने का सामना करना पड़ा (एजुकेटर्स विदाउट बॉर्डर्स, 2025)। इथियोपिया में बाढ़ ने बच्चों के ग्रेड 3.4% तक कम कर दिए, क्योंकि परिवारों ने पढ़ाई के बजाय जीवित रहने को प्राथमिकता दी (यूनेस्को, 2024)। अमीर देश भी अछूते नहीं: 2017 में तूफान हार्वे ने टेक्सास में हफ्तों तक स्कूल बंद किए, जिससे अंक गिरे (रैंडेल और ग्रे, 2024)। ये व्यवधान ड्रॉपआउट दर बढ़ाते हैं, खासकर कमज़ोर बुनियादी ढाँचे वाले क्षेत्रों में।

अप्रत्यक्ष रास्ते: स्वास्थ्य, पोषण, और आर्थिक तनाव

मौसम का असर सिर्फ़ भौतिक नुकसान तक सीमित नहीं। सूखा, बाढ़, या तूफान जैसी घटनाएँ गर्भवती माताओं और नवजातों के विकास को प्रभावित करती हैं। हरिकेन सैंडी के दौरान गर्भवती रही माताओं के बच्चों में ध्यान आभाव सक्रियता विकार (Attention Deficit Hyperactivity Disorder-ADHD) का ख़तरा 20% अधिक पाया गया (रैंडेल और ग्रे, 2024)। भारत में सूखे ने फसलें चौपट कीं, जिससे बच्चों के गणित और पढ़ने के अंक क्रमशः 4.1% और 2.7% घटे (यूनेस्को, 2024)। उप-सहारा अफ्रीका में गर्मी ने बच्चों के वजन को कम किया, जबकि दक्षिण एशिया में भारी बारिश ने ऊँचाई-के-मुताबिक़ वजन घटाया (दिमित्रोवा एट अल., 2024)।

आर्थिक संकट इन प्रभावों को और गहराते हैं। प्राकृतिक आपदाएँ रोज़गार नष्ट करती हैं, जिससे बच्चे मजदूरी या बाल विवाह की ओर धकेले जाते हैं। सात एशियाई देशों में, आपदाओं ने लड़कों के नामांकन और लड़कियों के गणित के अंक घटाए (यूनेस्को, 2024)। मंगोलिया में भीषण सर्दियों ने पशुपालकों की आय घटाई, जिससे स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या बढ़ी (ग्रोप्पो और क्राह्नेर्ट, 2016)। जलवायु प्रवासन लाखों बच्चों को स्कूल और सामाजिक सुरक्षा से दूर करता है—बांग्लादेश में 2020 की बाढ़ ने 17 लाख बच्चों को विस्थापित किया, जिनमें से कई स्कूल नहीं लौटे (यूनिसेफ, 2024)।

मानसिक स्वास्थ्य: जलवायु चिंता का ख़ामोश बोझ

आपदाएँ बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती हैं। आघात, चिंता, और पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) एकाग्रता और शैक्षणिक प्रदर्शन को कमजोर करते हैं। 2017 के एक अध्ययन में पाया गया कि आपदा के शिकार बच्चों में चिंता विकार 15% अधिक थे (अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन, 2017)। दक्षिण एशिया में 78% छात्रों ने गर्मी के दौरान ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई बताई (यूनिसेफ, 2024)। फिजी में 2021 के चक्रवात यासा के बाद बच्चों में पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) की दर बढ़ी, जिसने स्कूल उपस्थिति घटाई है।

इस चिंता को सही मार्गदर्शन न मिले तो यह निराशा में बदल सकती है। ग्रेटा थनबर्ग जैसे युवा इस चिंता को अभियानों में बदलते हैं, पर अधिकांश स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य सहायता का अभाव है (यूनेस्को, 2024)। ध्यान और काउंसलिंग जैसे कार्यक्रम लचीलापन बढ़ा सकते हैं।

लैंगिक असमानता: गर्म होती दुनिया में असमान बोझ

लड़कियों की शिक्षा पर जलवायु परिवर्तन का अधिक गहरा असर पड़ता है। उप-सहारा अफ्रीका में सूखे ने लड़कियों के ड्रॉपआउट में 7% अधिक वृद्धि की (यूनेस्को, 2024)। बांग्लादेश में बाढ़ ने बाल विवाह 12% बढ़ाए, जहाँ 13 साल की लड़कियों को स्कूल से निकाल दिया गया (यूनिसेफ, 2024)।

लड़कियों को स्वच्छता सुविधाओं के अभाव में यौन उत्पीड़न का ख़तरा भी बढ़ता है। भारत में 30% लड़कियों ने मासिक धर्म के दौरान स्कूल छोड़ना स्वीकारा (यूनेस्को, 2024)। लैंगिक संवेदनशील नीतियाँ—जैसे सुरक्षित शौचालय और छात्रवृत्तियाँ—इन अंतरों को कम कर सकती हैं।

दीर्घकालिक प्रभाव: जीवन की दिशा बदलते मौसम

शिक्षा में व्यवधान वयस्कता तक प्रभाव डालते हैं। 2019 के एक अध्ययन में पाया गया कि गर्भावस्था के दौरान गर्मी के संपर्क ने दक्षिणपूर्व एशिया में बच्चों की स्कूली शिक्षा 0.8 साल तक घटा दी (रैंडेल और ग्रे, 2019)। मंगोलिया में चरम सर्दियों के शिकार बच्चों के माध्यमिक शिक्षा पूरी करने की संभावना 10% कम थी (ग्रोप्पो और क्राह्नेर्ट, 2016)। हर स्कूली साल की कमी आजीवन आय को 7–10% तक घटाती है (कन्सर्न वर्ल्डवाइड, 2023)।

शिक्षा बच्चों को जलवायु संकट से लड़ने के लिए सशक्त भी बना सकती है। पर केवल 8% जोखिमग्रस्त देशों में जलवायु शिक्षा दी जाती है। फिलीपींस में आपदा तैयारी कार्यशालाओं ने स्कूल उपस्थिति 15% बढ़ाई है।

समाधान: एक सुरक्षित भविष्य की ओर

1. मज़बूत बुनियादी ढाँचा: शीतलन प्रणाली, बाढ़-रोधी डिज़ाइन, और सौर ऊर्जा से चलने वाले पंप स्कूलों को चरम मौसम से बचाएँगे।

2. जलवायु शिक्षा: पाठ्यक्रम में जलवायु अनुकूलन को शामिल करना।

3. सामाजिक सुरक्षा: फसल बीमा और नकद हस्तांतरण से परिवारों को स्थिरता।

4. लैंगिक नीतियाँ: लड़कियों के लिए सुरक्षित शौचालय और छात्रवृत्तियाँ।

5. मानसिक स्वास्थ्य: स्कूलों में काउंसलिंग और माइंडफुलनेस प्रशिक्षण।

इस विषय पर जानकारी बढ़ाने के लिए कुछ चुनिंदा पुस्तकें: -

       

       "बच्चों की शिक्षा ही उम्मीद की किरण है। सामूहिक प्रयासों से हम उनके भविष्य को सुरक्षित कर सकते हैं!"