ताजमहल: एक स्वप्न की खूबसूरत कहानी

CHAIFRY POT

Chaifry

6/12/2025

चार सौ वर्ष पहले की बात है, भारत के मध्य में, जहां ताप्ती नदी की लहरें बुरहानपुर के किनारों से टकराती थीं, वहां एक भव्य महल में राजा शाहजहां रहते थे। उनके साथ थी उनकी रानी मुमताज, जो चांद की तरह सुंदर थी। उनकी आंखों में सितारों की चमक और चेहरे पर ऐसी मुस्कान थी कि सारा राजमहल रोशन हो जाता था। राजा शाहजहां अपनी रानी को इतना प्यार करते थे कि उनके बिना एक पल भी नहीं रह पाते। भोजन का थाल तब तक उनके सामने नहीं आता था, जब तक रानी उनके पास न बैठती। रानी मुमताज न केवल सुंदर थीं, बल्कि बुद्धिमान और दयालु भी थीं। वह राज-काज में राजा की पूरी सहायता करती थीं, जैसे एक सच्ची साथी। गरीबों को दान देतीं, अनाथ बालिकाओं की शिक्षा और विवाह का प्रबंध करतीं, और हर छोटे-बड़े काम में रुचि लेतीं। उनका दिल इतना बड़ा था कि पूरा बुरहानपुर उनकी दयालुता की कहानियां गाता था।

एक रात, जब चांदनी आसमान में बिखरी थी, राजा शाहजहां को एक अजीब सा स्वप्न दिखा। स्वप्न में वह अपनी रानी को खो चुके थे। उनकी मृत्यु हो गई थी, और उन्हें समुद्र पार, जौनावादी बाग नाम की एक रहस्यमयी जगह में दफनाया गया था। राजा का दिल टूट गया। वह सपने में ही बिलखने लगे। सात दिन तक वह अपने शयन कक्ष में पलंग पर लेटे रहे, न राज-दरबार गए, न किसी से बात की। उन्हें लगता था कि उनका जीवन ही समाप्त हो चुका है। तभी, एक रात, जब चांद की रोशनी उनके कक्ष में झांक रही थी, एक चमकती हुई परी आसमान से उतरी। उसका चेहरा सितारों की तरह दमक रहा था, और उसकी आवाज शहद की तरह मीठी थी। उसने कहा, "हे राजन, क्यों चिंता में डूबे हो? तुम्हारा दुख मुझे दिखता है।"

राजा ने आंसुओं भरी आंखों से कहा, "मेरी रानी का स्वर्गवास हो गया है। मेरा जीवन अब सूना है। मैं संन्यास लेना चाहता हूं।"

परी ने मुस्कुराते हुए कहा, "संन्यास? लेकिन इस राज्य की प्रजा का क्या होगा, राजन? कौन करेगा उनका पालन-पोषण? तुम्हें इस महल में रहकर अपने कर्तव्यों को निभाना होगा। पर चिंता मत करो, एक उपाय है जो तुम्हारी रानी की आत्मा को शांति देगा और तुम्हारे दुख को कम करेगा।"

राजा की आंखों में एक चमक जागी। वह उत्साह से बोले, "हे परी, वह उपाय बताओ! मैं अपनी रानी के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं।"

परी ने अपनी जादुई पोटली से एक छोटा सा चमकता हुआ महल निकाला। वह इतना सुंदर था कि उसकी चमक से सारा कक्ष रोशन हो गया। उसने कहा, "पास के राज्य में राजा जयसिंह रहते हैं। उनके राज्य से यमुना नदी गुजरती है। उस नदी के किनारे आगरा नाम की जगह है। वहां तुम एक ऐसा भवन बनवाओ, जो तुम्हारी रानी की याद को अमर कर दे। यह भवन तुम्हारे प्यार का प्रतीक होगा, और तुम्हारी रानी की आत्मा को शांति मिलेगी।" इतना कहकर, परी हवा में गायब हो गई, और उसका चमकता महल राजा की आंखों के सामने नाचने लगा।

राजा घबराकर जाग पड़े। उन्होंने चारों ओर देखा—सब कुछ वैसा ही था। रानी उनके बगल में शांति से सो रही थीं। यह सिर्फ एक स्वप्न था। राजा ने राहत की सांस ली, लेकिन वह सपना उनके दिल में बस गया। उन्होंने इसे किसी को नहीं बताया, पर दिन-रात उसी के बारे में सोचते रहे। समय बीतता गया, और राज-काज सुचारु रूप से चलता रहा। बुरहानपुर में सुख-शांति थी। राजा की प्रतिष्ठा चारों ओर फैली थी, और उनके खजाने धन-धान्य से भरे थे। हर तरह के कारीगर—चित्रकार, मूर्तिकार, राजगीर—उनके दरबार में सम्मान पाते थे। गांववाले उनके गुण गाते थे, और रानी मुमताज की दयालुता की कहानियां हर गली में गूंजती थीं।

एक दिन, जब राजा अपने कक्ष में गहरी सोच में डूबे थे, उनकी बड़ी बेटी जहांआरा दौड़ती हुई आई। उसका चेहरा उत्साह से चमक रहा था। "अब्बा, अम्मी ने आपको बुलाया है!" उसने कहा। राजा तेजी से रानी के कक्ष की ओर बढ़े। वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि रानी ने एक नन्हीं कन्या को जन्म दिया था। लेकिन रानी की हालत ठीक नहीं थी। वह अचेत सी पड़ी थीं, उनका शरीर ठंडा हो चला था। राजा ने उनके माथे पर प्यार से हाथ रखा। रानी ने धीरे से आंखें खोलीं और बुदबुदाते हुए बोलीं, "हमारी संतानों का ख्याल रखना, मेरे स्वामी।" इतना कहकर, उन्होंने अंतिम सांस ली। उस समय रानी मुमताज की आयु थी उन्तालीस वर्ष, और राजा की चालीस। राजा का दिल टूट गया। वह बिलखते हुए अपने कक्ष में लौट आए। सात दिन तक वह शोक में डूबे रहे, न खाया, न पिया, न किसी से बात की। पूरा बुरहानपुर शोक में डूब गया।

सातवें दिन, जब राजा को होश आया, उन्हें परी का स्वप्न याद आया। उन्होंने ठान लिया कि वह उस स्वप्न को साकार करेंगे। सबसे पहले, उन्होंने राजा जयसिंह को संदेश भेजा, आगरा में यमुना के किनारे जमीन के लिए प्रस्ताव रखा। जयसिंह ने तुरंत मंजूरी दे दी। राजा शाहजहां ने दिल्ली से उस्ताद अहमद लाहौरी को बुलाया, जो एक मशहूर वास्तुकार थे। उन्होंने उस्ताद को परी के दिखाए चमकते महल का वर्णन किया। उस्ताद ने लकड़ी का एक छोटा सा मॉडल बनाया, जो ठीक वैसा ही था जैसा परी ने दिखाया था। राजा की आंखें खुशी से चमक उठीं। उन्होंने तुरंत निर्माण शुरू करने का आदेश दिया।

निर्माण के लिए दुनिया भर से सामग्री मंगाई गई। मकराना से चमकते सफेद संगमरमर, फतेहपुर सिकरी की पहाड़ियों से लाल बलुआ पत्थर, और दूर-दराज के देशों से रंग-बिरंगे बहुमूल्य रत्न लाए गए। बीस हजार कारीगर दिन-रात काम में जुट गए। राजा ने एक लिपि लेखक, एक राजगीर, दो शिल्पी, और एक गुंबद निर्माता को चुना, जो हर विवरण को सावधानी से तराशते। निर्माण में पचास लाख रुपये की लागत आई, और इसे पूरा होने में पूरे बाइस वर्ष लगे। हर दिन, राजा निर्माण स्थल पर जाते, कारीगरों से बात करते, और अपने सपने को आकार लेते देखते। कारीगरों की मेहनत, पत्थरों की नक्काशी, और गुंबद की भव्यता ने एक ऐसा चमत्कार रच दिया, जो दुनिया ने पहले कभी नहीं देखा था।

जब महल बनकर तैयार हुआ, राजा ने अपनी रानी की कब्र को जौनावादी बाग से लाकर इस भव्य इमारत के बीचों-बीच दफनवाया। उस रात, जब चांदनी यमुना के पानी पर नाच रही थी, राजा अकेले में बैठकर परी को याद करने लगे। "हे परी," उन्होंने पुकारा, "मैंने तुम्हारी इच्छा पूरी कर दी। एक बार आकर इसे देख लो।" तभी, एक चमक के साथ परी प्रकट हुई। उसने उस भवन को देखा, जो चांद की रोशनी में हीरे की तरह चमक रहा था। उसकी आंखें भावुक हो उठीं। "हे राजन," उसने कहा, "यह भवन तुम्हारे प्यार का प्रतीक है। तुम्हारी रानी की आत्मा अब शांति में है। इसका नाम रखो 'ताजमहल'।" इतना कहकर, परी हवा में गायब हो गई।

राजा ने उस भवन का नाम 'ताजमहल' रखा। यह सिर्फ एक इमारत नहीं थी, बल्कि उनके प्यार की अमर कहानी थी। बच्चे, जब तुम आगरा जाओ और यमुना के किनारे उस चमकते सफेद महल को देखो, तो याद करना—यह ताजमहल राजा शाहजहां और रानी मुमताज के अनमोल प्यार की निशानी है, जो एक स्वप्न से शुरू हुई और दुनिया का अजूबा बन गई। आज भी, जब चांदनी ताजमहल पर पड़ती है, तो लगता है कि रानी मुमताज की आत्मा वहां मुस्कुरा रही है, और सह्याद्रि की हवा उसकी कहानी गुनगुनाती है।