गंगा की गोद में बसी कहानियाँ

CHAIFRY POT

Chaifry

6/10/20251 min read

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में, जहां गंगा की लहरें किनारों से टकराकर एक अनमोल संगीत रचती हैं, वहां नीम की छांव में स्याही बिखरती है, जो गंगा की लय को थिरकने देती है। गंगा सिर्फ नदी नहीं, इस धरती की धड़कन है। जब वह रूठती है, गांव की सांसें थम जाती हैं। गंगा की गोद में बसी यह धरती मिट्टी के घरों में जलते चूल्हे की गर्माहट, मेलों में बच्चों की बेपरवाह हंसी, और गंगा आरती की भक्ति में डूबी संध्या को जीवंत करती है। गांव की जिंदगी की हर छोटी-बड़ी बात यहाँ बसती है—खेतों में पसीना बहाते किसानों की मेहनत, चौपाल पर बुजुर्गों की गूंजती कथाएं, और होली के रंगों में सराबोर पूरा गांव। गंगा के घाट की सीढ़ियां जीवंत हो उठती हैं, जहां महिलाएं कपड़े धोती हैं, बच्चे पानी में छींटे उड़ाते हैं, और सूरज की किरणें पानी पर नाचती हैं।

गंगा की लहरें एक अलौकिक शक्ति लिए होती हैं, मानो स्वयं देवी मां हर लहर में बसती हों। सुबह की शांति में, जब कोहरा खेतों पर पसरा होता है, गायों की घंटियों की आवाज हवा में तैरती है, और गंगा का जल सूर्य की पहली किरण में सुनहरा चमकता है, जैसे कोई जादुई दर्पण। संध्या में औरतें गंगा के किनारे मिट्टी के दीये जलाती हैं, और उनकी प्रार्थनाएं हवा में घुलकर आसमान तक पहुंचती हैं। गंगा की लहरें हर प्रार्थना को सुनती हैं, हर दुख को गले लगाती हैं, और हर खुशी को अपनी गोद में समेटती हैं। मेलों में रंग-बिरंगी चूड़ियों की खनक, भुने चने की सोंधी खुशबू, और ठेले पर बिकते गोलगप्पों की चटपटाहट गंगा के किनारे की रौनक को और बढ़ाती है। त्योहारों में यह धरती जगमगाती है—दिवाली की रात, जब मिट्टी के दीयों की रोशनी से पूरा गांव चमकता है, और होली का उल्लास, जब रंगों की बौछार में दोस्त-दुश्मन एक हो जाते हैं। दशहरा में रामलीला के मंच पर रावण का पुतला जलता है, और रक्षाबंधन में बहनें भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं, मिठाइयों की मिठास हवा में घुलती है।

गंगा की गोद में बसी यह धरती गांव की आत्मा को समेटती है। सुबह की उस शांति में, जब कोहरा खेतों को ढक लेता है, और गायों की घंटियां हवा में गूंजती हैं, गंगा की लहरें हर दिल की पुकार सुनती हैं। दोपहर में बच्चे आम के पेड़ों के नीचे खेलते हैं, और बूढ़ा बरगद अपनी छांव में सैकड़ों कथाएं छिपाए बैठा रहता है। संध्या में गंगा के किनारे दीये तैरते हैं, और भक्ति का राग हवा में बहता है। गंगा का किनारा वह जगह है, जहां गांववाले अपने दुख-सुख बांटते हैं। घाट की सीढ़ियों पर सूरज की पहली किरण पानी को सुनहरा करती है, और हर शाम दीयों की रोशनी गंगा की लहरों पर तैरती है। मेलों में मिट्टी के खिलौने, लकड़ी की तलवारें, और चटकीले रंगों की चूड़ियां हर दिल को लुभाती हैं। बरसात की रातों में गांववाले एक साथ बैठकर भुट्टे भूनते हैं, और हंसी-मजाक की आवाजें बारिश की बूंदों के साथ मिल जाती हैं।

गंगा की अलौकिकता हर पल में झलकती है। मानो वह हर गांववाले की मां हो, जो उनकी हर पुकार सुनती है। घाट पर बैठी बूढ़ी औरतें गंगा को अपनी मां मानकर उसकी गोद में सिर रखती हैं, और बच्चे गंगा में गोते लगाते हुए उसकी लहरों से खेलते हैं। गंगा की लहरें हर दुख को धो देती हैं, और हर खुशी को और गहरा करती हैं। छोटे मंदिरों में भक्त अपनी मन्नतें मांगते हैं, और तुलसी का पौधा हर आंगन में पवित्रता का प्रतीक बनकर खड़ा है। खेतों में पसीना बहाते किसान अपनी बेटियों को डाक्टर बनाने का सपना देखते हैं, और उनकी मेहनत गंगा की लहरों के साथ ताल मिलाती है। गंगा की धारा में वह शक्ति है, जो गांव की हर धड़कन को जोड़ती है, और हर घर को एक सूत्र में पिरोती है।

लेकिन गंगा की गोद में सिर्फ खूबसूरती नहीं बसती। बिजली की अनियमितता रात के अंधेरे को और गहरा कर देती है, जब बच्चे लालटेन की मद्धम रोशनी में किताबें खोलते हैं, और उनकी आंखें थकान से बोझिल हो जाती हैं। स्कूलों में टूटी बेंचों पर बच्चे बड़े सपने देखते हैं, लेकिन शिक्षकों की कमी और किताबों का अभाव उनके सपनों को धुंधला कर देता है। बाढ़ का कहर हर मॉनसून में आता है, खेतों को डुबो देता है, और किसानों की मेहनत को पानी में बहा ले जाता है। कर्ज में डूबे किसान अपनी जमीन बचाने की जद्दोजहद में रात-रात जागते हैं, और माएं अपने बच्चों के लिए दो वक्त की रोटी जुटाने की जंग लड़ती हैं। शहर की चकाचौंध में खोया युवा अपनी जड़ों को भूल जाता है, और बूढ़ा बरगद अब सूनी चौपालों की साक्षी बनता है, क्योंकि नई पीढ़ी मोबाइल की स्क्रीन में डूबी रहती है।

गंगा की लहरें इन दुखों को भी अपनी गोद में समेटती हैं। घाट पर औरतें अपनी बेटियों की शादी की मन्नत मांगती हैं, और नौजवान गंगा के किनारे बैठकर अपने खोए हुए प्यार को याद करते हैं। गंगा की धारा हर गम को बहा ले जाती है, और हर खुशी को और गहरा करती है। बूढ़ा पीपल गांववालों की जिंदगी की बातें सुनता है, और तालाब में कमल के फूल सुबह की धूप में खिलते हैं। पंचायत में गांववाले अपने झगड़ों को सुलझाते हैं, और स्कूल के मैदान में बच्चे क्रिकेट खेलते हैं, जहां हार-जीत में हंसी की गूंज सुनाई देती है। बकरी गांव की गलियों में भटकती है, और कुत्ता रात को चौपाल की रखवाली करता है।

गंगा की गोद में हर पल एक धड़कन बसती है। गंगा की लहरें गांव की हर बात को सुनती हैं, और हवा हर खुशी और गम को अपने साथ बहा ले जाती है। गंगा की अलौकिकता में वह शक्ति है, जो हर घर को जोड़ती है, और हर दिल को भक्ति से भर देती है। गंगा के किनारे की वह हवा, जो सुबह की ओस और शाम की आरती को अपने साथ ले जाती है, हर पाठक को उस गांव की सैर कराती है। गंगा की लहरें हर घर की धड़कन हैं, और हर धड़कन में मिट्टी की सोंधी खुशबू बसती है। हिंदी की सादगी और गहराई गंगा की गोद में ऐसी बसती है कि पाठक गंगा के किनारे बैठकर उस गांव की हवा को महसूस करता है। गंगा की धारा एक जीवंत चित्र बनाती है, जो इस धरती की आत्मा को जीवंत करती है। गंगा की गोद में बसी यह धड़कन हर पल में गूंजती है, और उसकी मिट्टी में उत्तर प्रदेश की अनमोल जड़ें बसती हैं।

Comment:
“मुझे बहुत पसंद आया कि आपने जिस तरह से गंगा के किनारे बसे ग्रामीण या देहाती जीवन का बहुत ही जीवंत चित्रण किया है। आपने भाषा की सादगी में समाज की हर गतिविधि को दैनिक जीवन से लेकर उनके धार्मिक और पारंपरिक अनुष्ठानों, त्योहारों और उनके जीवन चक्र तक का वर्णन किया है। बहुत बढ़िया।”Mark Desouza (https://www.crumbsnwonders.blog)