रचनाकारों के साथ चाय की चुस्की: भीष्म साहनी

SIPPING TEA WITH CREATORS

Chaifry

9/5/20251 min read

चाय की प्याली से उठती भाप में जैसे इतिहास की सोंधी खुशबू घुली हो, वैसी ही है भीष्म साहनी की लेखनी। उनका हर शब्द, हर संवाद, हर कहानी जैसे विभाजन की त्रासदी और मानवता की पुकार को जीवंत करती है। उनकी रचनाएँ सिर्फ़ साहित्य नहीं, बल्कि समाज की सच्चाइयों का आईना हैं, जो सामाजिक कुरीतियों को उजागर करती हैं और मानवता की मशाल जलाती हैं। 'रचनाकारों के साथ चाय की चुस्की' शृंखला के अठारहवें लेख में, आइए, साहनी की उस लेखनी में डूबें, जो आज भी हमारे दिलों को छूती है और समाज को जागृत करती है। भीष्म साहनी (8 अगस्त 1915 - 11 जुलाई 2003) हिंदी साहित्य के एक चमकते सितारे थे, जिन्होंने उपन्यास, कहानी, नाटक और संस्मरणों से साहित्य को समृद्ध किया।

उनका जन्म रावलपिंडी (अब पाकिस्तान) में हुआ था, और उन्होंने विभाजन की त्रासदी को अपनी रचनाओं में इतनी गहराई से उतारा कि वह आज भी पाठकों को झकझोर देती है। तमस, कुंटी, कबूतरखाना, चीफ की दावत और मैयादास की माड़ी जैसी कृतियों ने उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्म भूषण जैसे सम्मानों से नवाज़ा। उनकी लेखनी में वेदना, करुणा और रहस्यवाद का भाव था, जो सामाजिक असमानता, साम्प्रदायिकता और मानवता पर गहरे चिंतन को उजागर करता था। इस लेख में, हम उनकी लेखनी, भाषा-शैली, संवादों और सामाजिक चित्रण को तलाशेंगे, उनकी पाँच प्रमुख रचनाओं के चार-चार उदाहरणों के साथ। साथ ही, देखेंगे कि आज के डिजिटल युग में साहनी क्यों प्रासंगिक हैं और नए पाठकों को उन्हें क्यों पढ़ना चाहिए। तो, चाय की प्याली थामें और साहनी की साहित्यिक दुनिया में उतरें!

भीष्म साहनी: विभाजन का गवाह, मानवता का प्रहरी

भीष्म साहनी का जन्म 8 अगस्त 1915 को रावलपिंडी में एक व्यापारी परिवार में हुआ था। उनके पिता हरबंस लाल साहनी एक सफल व्यापारी थे, और माँ लक्ष्मी देवी ने उन्हें संस्कार दिए। साहनी की प्रारंभिक शिक्षा रावलपिंडी में हुई, और लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से उन्होंने एम.ए. किया। 1947 के विभाजन ने उनके परिवार को विस्थापित किया, जो उनकी रचनाओं में गहरे दर्द के रूप में उभरा। दिल्ली आकर उन्होंने शिक्षण, पत्रकारिता और लेखन में योगदान दिया। वे इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (आईपीटीए) से जुड़े और प्रगतिवादी विचारधारा से प्रभावित हुए। 1975 में तमस ने उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार दिलाया, और 1998 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। 11 जुलाई 2003 को दिल्ली में उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी लेखनी आज भी जीवंत है।

साहनी की लेखनी में सामाजिक यथार्थ, मानवता और विभाजन की त्रासदी का गहरा चित्रण था। उन्होंने साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार और सामाजिक असमानता पर अपनी रचनाओं से प्रहार किया। उनकी लेखनी ने स्वतंत्रता संग्राम और समाज सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे एक लेखक होने के साथ-साथ सजग नागरिक और मानवतावादी भी थे।

लेखनी, भाषा-शैली और संवाद: साहनी की साहित्यिक दुनिया

लेखनी: सामाजिक यथार्थ की धार

साहनी की लेखनी सामाजिक यथार्थ की धार थी, जो विभाजन की त्रासदी, साम्प्रदायिकता और मानवता की पीड़ा को उजागर करती थी। उनकी रचनाएँ—तमस, कुंटी, कबूतरखाना—समाज की समस्याओं को गहरे संवेदनशीलता से चित्रित करती थीं। तमस में उन्होंने 1947 के दंगों को इतनी जीवंतता से चित्रित किया कि वह साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसाल बना। उनकी लेखनी में करुणा और मानवता की पुकार थी, जो विश्व कल्याण की बात करती थी। साहनी की रचनाएँ पाठकों को भावुक करती थीं और समाज को सोचने पर मजबूर करती थीं।

भाषा-शैली: सरलता और भावनाओं की गहराई

साहनी की भाषा सरल, प्रवाहमयी और भावनात्मक थी। उनकी हिंदी लेखनी में पंजाबी और उर्दू की आत्मा थी, जो पाठकों को सहजता से जोड़ती थी। तमस में वे लिखते हैं:

“दंगे की आग में इंसानियत जल रही थी।”
यह पंक्ति साम्प्रदायिक हिंसा की भयावहता को दर्शाती है। उनकी शैली में हास्य और व्यंग्य का मिश्रण था, जो गंभीर मुद्दों को हल्के अंदाज़ में पेश करता था। कुंटी में उन्होंने पौराणिक कथाओं को आधुनिक संदर्भों में जीवंत किया। उनकी भाषा में तत्सम और तद्भव शब्दों का संतुलन था, जो उनकी रचनाओं को जीवंत बनाता था।

संवाद: समाज की नब्ज़

साहनी के संवाद यथार्थवादी और प्रभावशाली थे। तमस में हिंदू और मुसलमान पात्रों के संवाद साम्प्रदायिक सद्भाव को दर्शाते हैं। कुंटी में कुंटी और कर्ण के संवाद नैतिक दुविधाओं को उजागर करते हैं। उनके संवादों में हास्य, करुणा और तंज का मिश्रण था, जो पाठकों को भावुक करता था। साहनी के संवाद समाज की समस्याओं को जीवंत करते थे।

सामाजिक समस्याओं का चित्रण: विश्व कल्याण की पुकार

साहनी की रचनाएँ समाज का दर्पण थीं। उन्होंने साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार और सामाजिक असमानता को अपनी लेखनी का आधार बनाया। तमस में उन्होंने 1947 के दंगों की त्रासदी को चित्रित किया, जो साम्प्रदायिकता के खिलाफ़ एक चेतावनी थी। कुंटी में उन्होंने पौराणिक कथाओं से नैतिकता के सवाल उठाए। उनकी लेखनी में करुणा और मानवता की पुकार थी, जो विश्व कल्याण की बात करती थी। साहनी की रचनाएँ पाठकों को भावुक करती थीं और समाज को सोचने पर मजबूर करती थीं। उनकी लेखनी ने हिंदी साहित्य को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।

पाँच प्रमुख रचनाएँ और उदाहरण
साहनी की रचनाएँ हिंदी साहित्य की अनमोल धरोहर हैं। उनकी प्रमुख कृतियों में तमस, कुंटी, कबूतरखाना, चीफ की दावत और मैयादास की माड़ी शामिल हैं। आइए, इन पाँच रचनाओं के चार-चार उदाहरणों के ज़रिए उनकी लेखनी की गहराई को समझें।
1. तमस (1974)
विषय: विभाजन की त्रासदी और साम्प्रदायिकता।
1. “दंगे की आग में इंसानियत जल रही थी।” – साम्प्रदायिक हिंसा का चित्रण।
2. “हिंदू और मुसलमान की दोस्ती, दंगों में टूटती है।” – सद्भाव का पतन।
3. “सत्ता की राजनीति, आम आदमी का दुख।” – राजनीतिक शोषण।
4. “मानवता की पुकार, दंगों में खो जाती है।” – मानवता का संदेश।
यह उपन्यास साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसाल है।

2. कुंटी (1948)
विषय: नैतिक दुविधा और सामाजिक रूढ़ियाँ।
1. “कुंटी की पीड़ा, समाज का दर्द।” – नारी की पीड़ा।
2. “कर्ण का संघर्ष, नैतिकता की परीक्षा।” – नैतिक दुविधा।
3. “समाज की रूढ़ियाँ, इंसानियत को तोड़ती हैं।” – सामाजिक कुरीतियाँ।
4. “मानवता की जीत, नैतिकता का आधार।” – मानवता का संदेश।
यह नाटक नैतिकता और समाज पर सवाल उठाता है।

3. कबूतरखाना (1960)
विषय: सामाजिक असमानता और मानवता।
1. “कबूतरखाना का दृश्य, समाज का चित्र।” – सामाजिक यथार्थ।
2. “अमीर और गरीब की खाई, दिल को छूती है।” – असमानता का चित्रण।
3. “मानवता की पुकार, कबूतरखाने में गूँजती है।” – मानवता का संदेश।
4. “समाज की कुरीतियाँ, इंसानियत को तोड़ती हैं।” – सामाजिक कुरीतियाँ।
यह कहानी सामाजिक असमानता को उजागर करती है।

4. चीफ की दावत (1955)
विषय: भ्रष्टाचार और सामाजिक पाखंड।
1. “चीफ की दावत, भ्रष्टाचार का चित्र।” – भ्रष्टाचार का चित्रण।
2. “समाज का पाखंड, नैतिकता को तोड़ता है।” – पाखंड का प्रभाव।
3. “मानवता की जीत, नैतिकता का आधार।” – मानवता का संदेश।
4. “समाज की कुरीतियाँ, इंसानियत को तोड़ती हैं।” – सामाजिक कुरीतियाँ।
यह कहानी भ्रष्टाचार पर तंज कसती है।

5. मैयादास की माड़ी (1961)
विषय: सामाजिक यथार्थ और मानवता।
1. “मैयादास की माड़ी, समाज का दर्द।” – सामाजिक यथार्थ।
2. “मानवता की पुकार, माड़ी में गूँजती है।” – मानवता का संदेश।
3. “समाज की कुरीतियाँ, इंसानियत को तोड़ती हैं।” – सामाजिक कुरीतियाँ।
4. “वेदना की आह, दिल को छूती है।” – वेदना का चित्रण।
यह उपन्यास सामाजिक यथार्थ को दर्शाता है।

समाज पर प्रभाव: साहनी की लेखनी का अमर जादू

साहनी की रचनाएँ एक साहित्यिक क्रांति थीं। तमस ने विभाजन की त्रासदी को मानवतावादी दृष्टिकोण से प्रस्तुत कर धार्मिक सद्भाव की माँग की। कुंटी ने पौराणिक कथाओं से नैतिकता के सवाल उठाए। उनकी कहानियाँ, जैसे चीफ की दावत, सामाजिक पाखंड को उजागर करती थीं। उनकी लेखनी ने सामाजिक जागरूकता, भ्रष्टाचार के खिलाफ़ लड़ाई और मानवता की रक्षा के लिए आवाज़ उठाई। उनकी रचनाएँ पाठकों को हँसाने के साथ-साथ सोचने पर मजबूर करती थीं, जो समाज में सकारात्मक बदलाव की नींव रखती थीं। साहनी की लेखनी ने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया और समाज को एक नई दृष्टि दी।

आज के दौर में भीष्म साहनी क्यों? प्रासंगिकता की बुलंदी

भीष्म साहनी को पढ़ना आज केवल साहित्यिक आनंद नहीं, बल्कि समाज को समझने और बदलने का एक ज़रिया है। उनकी रचनाएँ सामाजिक असमानता, धार्मिक तनाव और सांस्कृतिक पहचान जैसे मुद्दों को उजागर करती हैं। डिजिटल युग में उनकी प्रासंगिकता दस बिंदुओं में समझी जा सकती है:
1. साम्प्रदायिक सद्भाव: तमस साम्प्रदायिक तनावों के बीच मानवता की पुकार है, जो आज के धार्मिक तनावों में प्रासंगिक है।
2. नैतिकता का पाठ: कुंटी नैतिक दुविधाओं को दर्शाता है, जो आज के नैतिक संकट में प्रासंगिक है।
3. सामाजिक असमानता: कबूतरखाना सामाजिक असमानता को उजागर करता है, जो आज के वर्ग विभाजन में प्रासंगिक है।
4. भ्रष्टाचार पर तंज: चीफ की दावत भ्रष्टाचार पर तंज कसता है, जो आज के भ्रष्टाचारग्रस्त समाज में प्रासंगिक है।
5. मानवता की पुकार: मैयादास की माड़ी मानवता की वकालत करता है, जो आज के विभाजनकारी दौर में ज़रूरी है।
6. साहित्यिक नवीनता: साहनी की शैली आज के लेखकों को प्रेरित करती है।
7. सांस्कृतिक विरासत: उनकी रचनाएँ भारतीय संस्कृति को जीवंत करती हैं।
8. ग्रामीण भारत: साहनी की कहानियाँ ग्रामीण भारत की समस्याओं को उजागर करती हैं, जो विकास नीतियों के लिए प्रासंगिक हैं।
9. करुणा और वेदना: उनकी लेखनी करुणा और वेदना को दर्शाती है, जो आज के तनावपूर्ण युग में प्रेरणा देती है।
10. शिक्षा और प्रेरणा: साहनी की रचनाएँ साहित्यिक जागरूकता को प्रेरित करती हैं, जो डिजिटल युग में ज़रूरी है।

अतिरिक्त उदाहरण: साहनी की साहित्यिक दुनिया

  • तमस: “दंगे की आग में इंसानियत जल रही थी।” – साम्प्रदायिक हिंसा का चित्रण।

  • कुंटी: “कुंटी की पीड़ा, समाज का दर्द।” – नारी की पीड़ा।

  • कबूतरखाना: “कबूतरखाना का दृश्य, समाज का चित्र।” – सामाजिक यथार्थ।

  • चीफ की दावत: “चीफ की दावत, भ्रष्टाचार का चित्र।” – भ्रष्टाचार का चित्रण।

  • मैयादास की माड़ी: “मैयादास की माड़ी, समाज का दर्द।” – सामाजिक यथार्थ।

भीष्म साहनी की लेखनी, साहित्य और समाज का जागरण

चाय की प्याली अब ठंडी हो चुकी होगी, लेकिन साहनी के शब्दों की गर्माहट आपके मन में ताज़ा है। उनकी रचनाएँ—तमस, कुंटी, कबूतरखाना, चीफ की दावत, मैयादास की माड़ी—हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि हैं। साहनी को पढ़ना एक साहित्यिक यात्रा है, वेदना, करुणा और रहस्यवाद की गलियों से गुज़रने की यात्रा। यह एक अनुभव है जो हमें समाज की सच्चाइयों, ज़िम्मेदारियों और संभावनाओं से रूबरू कराता है।

आज, जब साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार और असमानता समाज को चुनौती दे रहे हैं, साहनी की लेखनी एक मशाल है। वे हमें सिखाते हैं कि साहित्य केवल कहानियाँ नहीं, बल्कि समाज को बदलने का हथियार है। उनकी रचनाएँ साहस, सत्य और मानवता की राह दिखाती हैं। तो, चाय की अगली चुस्की लें और भीष्म साहनी की लेखनी में उतरें। उनकी हर पंक्ति एक आग है जो पाखंड को जलाती है, और हर शब्द एक दीपक जो समाज को रोशन करता है। भीष्म साहनी आज भी हमें सिखाते हैं कि साहित्य और समाज का मेल ही सच्ची क्रांति है।