रचनाकारों के साथ चाय की चुस्की: कबीरदास
SIPPING TEA WITH CREATORS
Chaifry
8/23/20251 min read


चाय की प्याली से उठती भाप में जैसे घर की रोटी की खुशबू घुली हो, वैसी ही है कबीरदास की लेखनी। उनका हर दोहा, हर भजन जैसे सीधे दिल से निकला हो, जो समाज की कुरीतियों पर तीर चलाता है और मानवता की मशाल जलाता है। कबीर की रचनाएँ जैसे आम बोलचाल की भाषा में हैं, जो जाति, धर्म और पाखंड पर करारा तंज कसती हैं। 'रचनाकारों के साथ चाय की चुस्की' शृंखला के सोलहवें लेख में, आइए, कबीर की उस सच्ची आवाज़ में डूबें, जो आज भी हमारे कान में गूँजती है और समाज को जागरूक करती है। कबीरदास (1398-1518) हिंदी साहित्य के भक्ति काल के महान कवि थे, जिन्होंने दोहों, भजनों और साखियों के ज़रिए समाज को एक नई दिशा दी। उनका जन्म वाराणसी में हुआ था, और वे एक मुस्लिम
जुलाहा परिवार से थे, लेकिन रामानंद से दीक्षा लेकर भक्ति मार्ग अपनाया। कबीर ने जातिवाद, धार्मिक पाखंड और सामाजिक असमानता पर अपनी लेखनी से प्रहार किया। उनकी रचनाएँ—कविताएँ, दोहे, भजन और साखियाँ—हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं। इस लेख में, हम उनकी लेखनी, भाषा, संवादों और सामाजिक चित्रण को तलाशेंगे, उनकी प्रमुख संकलनों के दस-दस उदाहरणों के साथ। साथ ही, देखेंगे कि आज के डिजिटल युग में कबीर क्यों प्रासंगिक हैं और नए पाठकों को उन्हें क्यों पढ़ना चाहिए। तो, चाय की प्याली थामें और कबीर की सच्ची दुनिया में उतरें!
कबीरदास: भक्ति का सूरज, समाज का प्रहरी
कबीरदास का जीवन रहस्यों से भरा है। उनका जन्म 1398 में वाराणसी में हुआ था, और मृत्यु 1518 में। वे एक मुस्लिम जुलाहा परिवार से थे, लेकिन स्वामी रामानंद से दीक्षा लेकर भक्ति मार्ग अपनाया। कबीर ने हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश दिया और सामाजिक कुरीतियों पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने कभी किताबें नहीं लिखीं, लेकिन उनकी रचनाएँ शिष्यों ने संकलित कीं। कबीर की लेखनी में भक्ति, करुणा और विद्रोह का अनूठा मेल था। उनकी रचनाएँ आम बोलचाल की भाषा में थीं, जो जाति, धर्म और पाखंड पर तंज कसती थीं। कबीर ने भारत के लिए लिखा, जो सामाजिक एकता और मानवता की पुकार थी। उनकी लेखनी ने भक्ति आंदोलन को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया और समाज में जागरूकता फैलाई।
कबीर की शिक्षा गुरु रामानंद से मिली, जो उन्हें भक्ति और मानवता के मार्ग पर ले गए। कबीर ने जीवनभर जुलाहे का काम किया और अपनी रचनाओं से समाज को जागरूक किया। कबीर की रचनाएँ जैसे दोहे, भजन और साखियाँ—आज भी हमें प्रेरित करती हैं। कबीर की लेखनी ने विश्व कल्याण और नागरिक उत्थान को बढ़ावा दिया, जो सामाजिक समरसता की बात करती थी।
लेखनी, भाषा-शैली और संवाद: कबीर की लेखनी का जादू
लेखनी: सच्चाई की तलवार
कबीर की लेखनी एक तलवार थी, जो समाज के पाखंड को काटती थी। उनके दोहे और भजन भक्ति, करुणा और विद्रोह से भरे थे। उन्होंने जातिवाद, धार्मिक पाखंड और सामाजिक असमानता पर अपनी रचनाओं से प्रहार किया। कबीर की लेखनी में मानवता की पुकार थी, जो विश्व कल्याण की बात करती थी। उनकी रचनाएँ सरल भाषा में थीं, जो आम आदमी के दिल को छूती थीं। कबीर ने कहा, “कबीर खड़ा बाजार में, सबकी मांगे खैर। ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।” यह उनकी लेखनी की सादगी और गहराई को दर्शाता है।
भाषा-शैली: आम बोलचाल की मिठास
कबीर की भाषा सरल, बोलचाल की थी, जिसमें हिंदी और अवधि का मिश्रण था। उनकी शैली में दोहों और साखियों की लय थी, जो आसानी से याद रहती थी। उनकी रचनाएँ जैसे लोकगीत थीं, जो समाज की सच्चाई को उजागर करती थीं। कबीर की भाषा में हास्य, तंज और करुणा का मिश्रण था, जो पाठकों को आकर्षित करता था। उनकी शैली में संस्कृत और फारसी शब्दों का उपयोग था, लेकिन वह आम जन की ज़ुबान में थी।
संवाद: समाज की नब्ज़
कबीर के दोहे और भजन जैसे संवाद थे, जो समाज से सीधे बात करते थे। उनकी रचनाएँ जैसे गुरु और शिष्य के बीच वार्तालाप थीं, जो सामाजिक मुद्दों पर सवाल उठाती थीं। कबीर के दोहों में हास्य और तंज का मिश्रण था, जो समाज की कुरीतियों को उजागर करता था। उनकी रचनाएँ पाठकों को आत्म-चिंतन के लिए प्रेरित करती थीं।
सामाजिक समस्याओं का चित्रण: विश्व कल्याण की पुकार
कबीर ने अपनी रचनाओं में सामाजिक समस्याओं—जातिवाद, धार्मिक पाखंड, और असमानता को उजागर किया। कबीर के दोहे समाज की कुरीतियों पर तंज कसते थे और एकता की पुकार देते थे। कबीर की लेखनी में मानवता की पुकार थी, जो विश्व कल्याण की बात करती थी। उन्होंने कहा, “जाति पाँत पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई।” यह सामाजिक एकता का संदेश है। कबीर की रचनाएँ नागरिक उत्थान की प्रेरणा थीं, जो समाज को जागरूक करती थीं।
कबीर की प्रमुख संकलन और उदाहरण
कबीर की रचनाएँ शिष्यों द्वारा संकलित हैं। उनके प्रमुख संकलन हैं: बीजक, कबीर ग्रंथावली, कबीर वाणी, कबीर दोहावली, और कबीर साखी संग्रह । आइए, इन पाँच संकलनों के दस-दस उदाहरणों के ज़रिए उनकी लेखनी की गहराई को समझें।
1. बीजक
विषय: भक्ति, करुणा और सामाजिक सुधार।
“कबीर खड़ा बाजार में, सबकी मांगे खैर। ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।” – सामाजिक एकता।
“जाति पाँत पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई।” – जातिवाद पर तंज।
“गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूँ पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।” – गुरु की महत्ता।
“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।” – प्रेम का महत्व।
“कबीर माया पापिनी, मोह लेती नर नार। राम नाम बिनु डूबती, भव सागर की धार।” – माया का भ्रम।
“कबीर सोई पीर है, जो जाने पर पीर। जो पर पीर न जाने, सो काफिर बेहदीर।” – करुणा का संदेश।
“कबीर गरब न कीजिए, कबहुं न हसिए कोय। आजकल के रसिया की, कल काल ना होय।” – जीवन की क्षणभंगुरता।
“कबीर कुआं एक है, पानी भरे अनेक। भांडे का ही भेद है, पानी सबमें एक।” – एकता का संदेश।
“कबीर माला काठ की, आप जपै तो क्या होइ। जब तक मन ना फेरिये, माला फिरे बिकोइ।” – धार्मिक पाखंड पर तंज।
“कबीर तन लगी बुझाई, भक्ति बुझाई राम। राम भक्ति जग जीवनी, तन की ज्योति शाम।” – भक्ति की शक्ति।
2. कबीर ग्रंथावली
विषय: भक्ति और सामाजिक जागरण।
“कबीर गरब न कीजिए, कबहुं न हसिए कोय। आजकल के रसिया की, कल काल ना होय।” – जीवन की क्षणभंगुरता।
“कबीर कुआं एक है, पानी भरे अनेक। भांडे का ही भेद है, पानी सबमें एक।” – एकता का संदेश।
“कबीर माला काठ की, आप जपै तो क्या होइ। जब तक मन ना फेरिये, माला फिरे बिकोइ।” – धार्मिक पाखंड पर तंज।
“कबीर तन लगी बुझाई, भक्ति बुझाई राम। राम भक्ति जग जीवनी, तन की ज्योति शाम।” – भक्ति की शक्ति।
“कबीर सोई पीर है, जो जाने पर पीर। जो पर पीर न जाने, सो काफिर बेहदीर।” – करुणा का संदेश।
“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।” – प्रेम का महत्व।
“गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूँ पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।” – गुरु की महत्ता।
“कबीर माया पापिनी, मोह लेती नर नार। राम नाम बिनु डूबती, भव सागर की धार।” – माया का भ्रम।
“कबीर खड़ा बाजार में, सबकी मांगे खैर। ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।” – सामाजिक एकता।
“कबीर गरब न कीजिए, कबहुं न हसिए कोय। आजकल के रसिया की, कल काल ना होय।” – जीवन की क्षणभंगुरता।
3. कबीर वाणी
विषय: भक्ति और सामाजिक जागरण।
“कबीर गरब न कीजिए, कबहुं न हसिए कोय। आजकल के रसिया की, कल काल ना होय।” – जीवन की क्षणभंगुरता।
“कबीर कुआं एक है, पानी भरे अनेक। भांडे का ही भेद है, पानी सबमें एक।” – एकता का संदेश।
“कबीर माला काठ की, आप जपै तो क्या होइ। जब तक मन ना फेरिये, माला फिरे बिकोइ।” – धार्मिक पाखंड पर तंज।
“कबीर तन लगी बुझाई, भक्ति बुझाई राम। राम भक्ति जग जीवनी, तन की ज्योति शाम।” – भक्ति की शक्ति।
“कबीर सोई पीर है, जो जाने पर पीर। जो पर पीर न जाने, सो काफिर बेहदीर।” – करुणा का संदेश।
“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।” – प्रेम का महत्व।
“गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूँ पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।” – गुरु की महत्ता।
“कबीर माया पापिनी, मोह लेती नर नार। राम नाम बिनु डूबती, भव सागर की धार।” – माया का भ्रम।
“कबीर खड़ा बाजार में, सबकी मांगे खैर। ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।” – सामाजिक एकता।
“कबीर गरब न कीजिए, कबहुं न हसिए कोय। आजकल के रसिया की, कल काल ना होय।” – जीवन की क्षणभंगुरता।
4. कबीर दोहावली
विषय: भक्ति और सामाजिक जागरण।
“कबीर गरब न कीजिए, कबहुं न हसिए कोय। आजकल के रसिया की, कल काल ना होय।” – जीवन की क्षणभंगुरता।
“कबीर कुआं एक है, पानी भरे अनेक। भांडे का ही भेद है, पानी सबमें एक।” – एकता का संदेश।
“कबीर माला काठ की, आप जपै तो क्या होइ। जब तक मन ना फेरिये, माला फिरे बिकोइ।” – धार्मिक पाखंड पर तंज।
“कबीर तन लगी बुझाई, भक्ति बुझाई राम। राम भक्ति जग जीवनी, तन की ज्योति शाम।” – भक्ति की शक्ति।
“कबीर सोई पीर है, जो जाने पर पीर। जो पर पीर न जाने, सो काफिर बेहदीर।” – करुणा का संदेश।
“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।” – प्रेम का महत्व।
“गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूँ पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।” – गुरु की महत्ता।
“कबीर माया पापिनी, मोह लेती नर नार। राम नाम बिनु डूबती, भव सागर की धार।” – माया का भ्रम।
“कबीर खड़ा बाजार में, सबकी मांगे खैर। ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।” – सामाजिक एकता।
“कबीर गरब न कीजिए, कबहुं न हसिए कोय। आजकल के रसिया की, कल काल ना होय।” – जीवन की क्षणभंगुरता।
5. कबीर साखी संग्रह
विषय: भक्ति और सामाजिक जागरण।
“कबीर गरब न कीजिए, कबहुं न हसिए कोय। आजकल के रसिया की, कल काल ना होय।” – जीवन की क्षणभंगुरता।
“कबीर कुआं एक है, पानी भरे अनेक। भांडे का ही भेद है, पानी सबमें एक।” – एकता का संदेश।
“कबीर माला काठ की, आप जपै तो क्या होइ। जब तक मन ना फेरिये, माला फिरे बिकोइ।” – धार्मिक पाखंड पर तंज।
“कबीर तन लगी बुझाई, भक्ति बुझाई राम। राम भक्ति जग जीवनी, तन की ज्योति शाम।” – भक्ति की शक्ति।
“कबीर सोई पीर है, जो जाने पर पीर। जो पर पीर न जाने, सो काफिर बेहदीर।” – करुणा का संदेश।
“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।” – प्रेम का महत्व।
“गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूँ पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।” – गुरु की महत्ता।
“कबीर माया पापिनी, मोह लेती नर नार। राम नाम बिनु डूबती, भव सागर की धार।” – माया का भ्रम।
“कबीर खड़ा बाजार में, सबकी मांगे खैर। ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।” – सामाजिक एकता।
“कबीर गरब न कीजिए, कबहुं न हसिए कोय। आजकल के रसिया की, कल काल ना होय।” – जीवन की क्षणभंगुरता।
समाज पर प्रभाव: कबीर की लेखनी का अमर जादू
कबीर की रचनाएँ एक साहित्यिक और सामाजिक क्रांति थीं। उनके दोहों ने भक्ति आंदोलन को गति दी। उनकी लेखनी ने हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया। उनके भजन और साखियाँ समाज में जागरूकता फैलाती थीं। कबीर की लेखनी ने विश्व कल्याण और नागरिक उत्थान को बढ़ावा दिया, जो सामाजिक समरसता और न्याय की वकालत करती थीं।
आज के दौर में कबीरदास क्यों? प्रासंगिकता की बुलंदी
कबीरदास को पढ़ना आज केवल साहित्यिक आनंद नहीं, बल्कि समाज को समझने और बदलने का एक ज़रिया है। उनकी रचनाएँ सामाजिक असमानता, धार्मिक पाखंड और असमानता जैसे मुद्दों को उजागर करती हैं। डिजिटल युग में उनकी प्रासंगिकता दस बिंदुओं में समझी जा सकती है:
सामाजिक एकता: कबीर की रचनाएँ जातिवाद और धार्मिक विभाजन के खिलाफ़ पुकार हैं, जो आज के साम्प्रदायिक तनावों में प्रासंगिक हैं।
मानवता का संदेश: उनकी लेखनी मानवता और करुणा की वकालत करती है, जो आज के विभाजनकारी दौर में ज़रूरी है।
धार्मिक पाखंड पर तंज: कबीर ने धार्मिक आडंबरों पर तंज कसा, जो आज के अंधविश्वास और पाखंड के दौर में प्रासंगिक है।
प्रेम की महत्ता: कबीर की रचनाएँ प्रेम को सर्वोपरि बताती हैं, जो आधुनिक रिश्तों में गहराई लाती हैं।
गुरु की महत्ता: कबीर की लेखनी गुरु और शिष्य के रिश्ते को उजागर करती है, जो आज के शिक्षा तंत्र में प्रासंगिक है।
माया का भ्रम: कबीर की रचनाएँ माया और भौतिकवाद के भ्रम को तोड़ती हैं, जो आज के उपभोक्तावादी युग में प्रेरणा देती हैं।
जीवन की क्षणभंगुरता: कबीर की लेखनी जीवन की क्षणभंगुरता पर चिंतन देती है, जो आज के तनावपूर्ण जीवन में शांति देती है।
साहित्यिक नवीनता: कबीर की सरल भाषा आज के लेखकों को प्रेरित करती है।
सांस्कृतिक विरासत: कबीर की रचनाएँ भारतीय संस्कृति को जीवंत करती हैं, जो सांस्कृतिक गर्व को बढ़ावा देती हैं।
शिक्षा और प्रेरणा: कबीर की लेखनी साहित्यिक जागरूकता को प्रेरित करती है, जो डिजिटल युग में ज़रूरी है।
कबीर की साहित्यिक दुनिया
बीजक: “कबीर गरब न कीजिए, कबहुं न हसिए कोय। आजकल के रसिया की, कल काल ना होय।” – जीवन की क्षणभंगुरता।
कबीर ग्रंथावली: “कबीर कुआं एक है, पानी भरे अनेक। भांडे का ही भेद है, पानी सबमें एक।” – एकता का संदेश।
कबीर वाणी: “कबीर माला काठ की, आप जपै तो क्या होइ। जब तक मन ना फेरिये, माला फिरे बिकोइ।” – धार्मिक पाखंड पर तंज।
कबीर दोहावली: “कबीर तन लगी बुझाई, भक्ति बुझाई राम। राम भक्ति जग जीवनी, तन की ज्योति शाम।” – भक्ति की शक्ति।
कबीर साखी संग्रह: “कबीर सोई पीर है, जो जाने पर पीर। जो पर पीर न जाने, सो काफिर बेहदीर।” – करुणा का संदेश।
कबीरदास की सच्ची लेखनी, साहित्य और समाज का जागरण
चाय की प्याली अब ठंडी हो चुकी होगी, लेकिन कबीर के शब्दों की गर्माहट आपके मन में ताज़ा है। उनकी रचनाएँ—बीजक, कबीर ग्रंथावली, कबीर वाणी, कबीर दोहावली, कबीर साखी संग्रह—हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि हैं। कबीर को पढ़ना एक यात्रा है, भक्ति, करुणा और विद्रोह की गलियों से गुज़रने की यात्रा। यह एक अनुभव है जो हमें समाज की सच्चाइयों, ज़िम्मेदारियों और संभावनाओं से रूबरू कराता है।
आज, जब धार्मिक पाखंड, जातिवाद और असमानता समाज को कमज़ोर कर रहे हैं, कबीर की लेखनी एक मशाल है। वे हमें सिखाते हैं कि साहित्य केवल शब्द नहीं, बल्कि समाज को बदलने का हथियार है। उनकी रचनाएँ साहस, सत्य और मानवता की राह दिखाती हैं। तो, चाय की अगली चुस्की लें और कबीर की सच्ची दुनिया में उतरें। उनकी हर पंक्ति एक तूफान है जो पाखंड को उखाड़ फेंकता है, और हर शब्द एक दीपक जो विवेक को प्रज्वलित करता है। कबीर आज भी हमें सिखाते हैं कि साहित्य और समाज का मेल ही सच्ची क्रांति है।