रचनाकारों के साथ चाय की चुस्की : प्रेमचंद
SIPPING TEA WITH CREATORS
Chaifry
7/17/20251 min read


सुबह की चाय की चुस्की और प्रेमचंद की कहानियाँ—यह जोड़ी आज भी उतनी ही ताज़ा और जीवंत है जितनी सदी पहले थी। मुंशी प्रेमचंद, हिंदी साहित्य के सूरज, जिनकी लेखनी ने न केवल साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि समाज की नब्ज़ को भी टटोला। लेकिन सवाल यह है कि डिजिटल युग में, जब स्क्रॉल करने की आदत ने किताबों को किनारे कर दिया है, तब प्रेमचंद को पढ़ना क्यों ज़रूरी है? क्या उनकी कहानियाँ आज के नौजवानों, जो सोशल मीडिया की चकाचौंध में खोए हैं, के लिए प्रासंगिक हैं? जवाब है—हाँ, और वह भी पूरे दमखम के साथ! प्रेमचंद की रचनाएँ न केवल सामाजिक समस्याओं का आलम लिए हैं, बल्कि वे हमें आज के समाज की चुनौतियों को समझने और उनसे निपटने की प्रेरणा भी देती हैं।
आइए, चाय की चुस्की के साथ, प्रेमचंद की लेखनी की प्रासंगिकता को कुछ रोचक उदाहरणों के साथ समझें।
प्रेमचंद की लेखनी: एक कालातीत दर्पण
प्रेमचंद की कहानियाँ और उपन्यास केवल साहित्य नहीं, बल्कि समाज का एक ऐसा दर्पण हैं जो समय की सीमाओं को तोड़ता है। उनकी रचनाएँ—जैसे गोदान, कफन, नमक का दरोगा, और ईदगाह—गरीबी, असमानता, भ्रष्टाचार और मानवीय संवेदनाओं की जटिलताओं को उजागर करती हैं। उनकी भाषा की सादगी और संवादों की जीवंतता आज भी पाठकों को अपनी ओर खींचती है। लेकिन आज के संदर्भ में प्रेमचंद को पढ़ना क्यों ज़रूरी है? क्योंकि उनकी कहानियाँ हमें आज के सामाजिक, आर्थिक और नैतिक मुद्दों से जोड़ती हैं, जो बदले हुए रूप में आज भी हमारे सामने हैं।
1. सामाजिक असमानता और आर्थिक संघर्ष: गोदान का होरी आज भी जीवित है
गोदान (1936) प्रेमचंद का वह उपन्यास है जो ग्रामीण भारत की त्रासदी को बयान करता है। होरी, एक गरीब किसान, अपनी गाय खरीदने के सपने में कर्ज के बोझ तले दब जाता है और अंततः अपनी जान गँवा देता है। होरी का यह संवाद, "मैं तो बस एक गाय चाहता हूँ, जिससे मेरे बच्चे दूध पी सकें," आज भी कई भारतीय गाँवों की हकीकत बयान करता है।
आज के संदर्भ में देखें तो क्या बदला है? भले ही जमींदारी प्रथा खत्म हो गई हो, लेकिन कर्ज का बोझ, किसानों की आत्महत्याएँ, और आर्थिक असमानता आज भी हमारे समाज की सच्चाई हैं। 2025 में, जब हम डिजिटल इंडिया और स्टार्टअप्स की बात करते हैं, तब भी ग्रामीण भारत में लाखों होरी कर्ज और गरीबी से जूझ रहे हैं। हाल के आँकड़ों के अनुसार, भारत में किसानों पर औसत कर्ज 2022 तक 74,000 रुपये प्रति परिवार था, और यह आँकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। प्रेमचंद का गोदान हमें यह समझाता है कि आर्थिक प्रगति के दावों के बीच समाज का एक बड़ा वर्ग अभी भी हाशिए पर है। इसे पढ़कर आज का युवा न केवल ग्रामीण भारत की वास्तविकता से रू-ब-रू होगा, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी की भावना भी जागृत होगी।
2. नैतिकता और मानवीय संवेदनाओं का ह्रास: कफन की प्रासंगिकता
कफन (1935) प्रेमचंद की सबसे मार्मिक कहानियों में से एक है, जो गरीबी के कारण मानवीय संवेदनाओं के ह्रास को दर्शाती है। घीसू और माधव, अपनी बहू की मृत्यु के बाद कफन के लिए मिले पैसे को शराब और भोजन में उड़ा देते हैं। घीसू का यह कथन, "कफन से क्या होगा, वह तो जल जाएगा, हम तो जीवित हैं," समाज की उस कठोर सच्चाई को उजागर करता है, जहाँ गरीबी इंसान को अपनी नैतिकता तक खोने पर मजबूर कर देती है।
आज के दौर में, यह कहानी और भी प्रासंगिक हो जाती है। सोशल मीडिया पर हम अक्सर देखते हैं कि लोग दूसरों के दुख-दर्द को नजरअंदाज कर अपनी सुख-सुविधाओं में डूबे रहते हैं। भ्रष्टाचार, स्वार्थ, और सामाजिक असंवेदनशीलता आज के समाज की बड़ी समस्याएँ हैं। उदाहरण के लिए, हाल ही में सोशल मीडिया पर वायरल हुए कई वीडियो में लोग गरीबों की मदद करने के बजाय उनके दुख को रिकॉर्ड कर लाइक्स और शेयर बटोरते नजर आए। कफन हमें यह सिखाता है कि समाज में संवेदनशीलता और मानवता को जीवित रखना कितना ज़रूरी है। यह कहानी आज के युवाओं को आत्ममंथन के लिए प्रेरित करती है कि वे अपने आसपास की दुनिया के प्रति कितने जागरूक और संवेदनशील हैं।
3. भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज: नमक का दरोगा
प्रेमचंद की कहानी नमक का दरोगा (1910) भ्रष्टाचार और नैतिकता के बीच की जंग को दर्शाती है। वंशीधर, एक ईमानदार दरोगा, रिश्वत के लालच को ठुकराकर अपने कर्तव्य का पालन करता है। यह कहानी आज के भारत में और भी प्रासंगिक है, जहाँ भ्रष्टाचार हर स्तर पर व्याप्त है। 2025 में, जब हम डिजिटल गवर्नेंस और पारदर्शिता की बात करते हैं, तब भी भ्रष्टाचार की खबरें—चाहे वह सरकारी योजनाओं में गड़बड़ी हो या कॉर्पोरेट घोटाले—लगातार सामने आती हैं। प्रेमचंद की यह कहानी हमें सिखाती है कि व्यक्तिगत ईमानदारी और नैतिकता समाज को बदल सकती है। आज का युवा, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना चाहता है, वंशीधर जैसे पात्रों से प्रेरणा ले सकता है।
प्रेमचंद को पढ़ने की नई अपील
प्रेमचंद को पढ़ना केवल साहित्यिक अभ्यास नहीं, बल्कि एक सामाजिक और नैतिक यात्रा है। उनकी कहानियाँ हमें न केवल समाज की समस्याओं से जोड़ती हैं, बल्कि हमें आत्ममंथन के लिए भी प्रेरित करती हैं। लेकिन आज के डिजिटल युग में, प्रेमचंद को पढ़ने का तरीका भी नया हो सकता है। उदाहरण के लिए:
पॉडकास्ट और ऑडियोबुक्स: प्रेमचंद की कहानियाँ जैसे ईदगाह या बड़े भाई साहब को ऑडियोबुक्स या पॉडकास्ट के रूप में सुना जा सकता है। ईदगाह में हामिद का अपनी दादी के लिए चिमटा खरीदने का त्याग आज भी बच्चों और बड़ों को भावुक कर सकता है।
सोशल मीडिया पर चर्चा: प्रेमचंद की कहानियों को सोशल मीडिया पर वायरल बनाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, कफन के संवादों को छोटे-छोटे मीम्स या रील्स के रूप में प्रस्तुत कर आज के युवाओं तक उनकी प्रासंगिकता पहुँचाई जा सकती है।
वेबिनार और डिस्कशन ग्रुप्स: ऑनलाइन बुक क्लब्स या वेबिनार में गोदान जैसे उपन्यासों पर चर्चा कर आज की आर्थिक नीतियों और सामाजिक मुद्दों से जोड़ा जा सकता है।
समाज पर प्रभाव और विश्व कल्याण
प्रेमचंद की रचनाएँ न केवल भारत में, बल्कि विश्व स्तर पर भी प्रासंगिक हैं। उनकी कहानियाँ सामाजिक समानता, मानवता और नैतिकता का संदेश देती हैं, जो विश्व कल्याण के लिए आज भी ज़रूरी हैं। उनकी लेखनी ने स्वतंत्रता संग्राम के दौर में लोगों को सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता के लिए प्रेरित किया था, और आज भी उनकी रचनाएँ हमें सतत विकास, सामाजिक न्याय और समावेशी समाज की दिशा में सोचने के लिए प्रेरित करती हैं।
चाय, प्रेमचंद और बदलाव की शुरुआत
चाय की चुस्की के साथ प्रेमचंद की कहानियाँ पढ़ना न केवल साहित्यिक आनंद देता है, बल्कि हमें अपने समाज को बेहतर बनाने की प्रेरणा भी देता है। गोदान हमें आर्थिक असमानता से लड़ने की प्रेरणा देता है, कफन हमें मानवता और संवेदनशीलता की याद दिलाता है, और नमक का दरोगा हमें ईमानदारी का पाठ पढ़ाता है। 2025 में, जब हम तकनीक और प्रगति की बात करते हैं, प्रेमचंद की रचनाएँ हमें याद दिलाती हैं कि असली प्रगति तब होगी जब समाज का हर वर्ग सम्मान और समानता के साथ जी सके। तो, अगली बार जब आप चाय की चुस्की लें, प्रेमचंद की किताब खोलें—क्योंकि उनकी लेखनी न केवल साहित्य है, बल्कि एक बेहतर समाज की नींव है।