रचनाकारों के साथ चाय की चुस्की: फणीश्वरनाथ रेणु

SIPPING TEA WITH CREATORS

Chaifry

8/20/20251 min read

चाय की प्याली से उठती भाप में जैसे गांव की मिट्टी की सोंधी खुशबू घुली हो, वैसी ही है फणीश्वरनाथ रेणु की लेखनी। उनका हर शब्द, हर संवाद, हर कहानी जैसे बिहार के खेतों, गलियों और मेले की जीवंत तस्वीर खींचता है। उनकी रचनाएँ सिर्फ़ साहित्य नहीं, बल्कि ग्रामीण भारत की आत्मा हैं, जो समाज की समस्याओं को उजागर करती हैं और मानवता की मशाल जलाती हैं। 'रचनाकारों के साथ चाय की चुस्की' शृंखला के पंद्रहवें लेख में, आइए, रेणु की उस लेखनी में डूबें, जो आज भी हमारे दिलों को छूती है और समाज को झकझोरती है। फणीश्वरनाथ रेणु (4 मार्च 1921 - 11 अप्रैल 1977) हिंदी साहित्य के उन सितारों में से एक हैं, जिन्होंने आंचलिक कथा लेखन को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। मैला आंचल और तीसरी कसम जैसी रचनाओं ने उन्हें हिंदी साहित्य में अमर कर दिया।

उनकी लेखनी में ग्रामीण जीवन की सादगी, सामाजिक कुरीतियों पर तंज और नागरिक उत्थान की पुकार थी।

फणीश्वरनाथ रेणु: आंचलिक साहित्य का ध्रुव तारा

फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म 4 मार्च 1921 को बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिंगना गांव में एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता शिलानाथ मंडल स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही थे, और माता पानो देवी ने उन्हें संस्कारों की गहराई दी। रेणु की प्रारंभिक शिक्षा अररिया और फारबिसगंज में हुई। मैट्रिक के बाद वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय गए, लेकिन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े। 1950 में उन्होंने नेपाल की राणाशाही के खिलाफ़ क्रांतिकारी आंदोलन में हिस्सा लिया, जिससे नेपाल में जनतंत्र की स्थापना हुई। 1952-53 में गंभीर बीमारी (पेप्टिक अल्सर) ने उन्हें लेखन की ओर मोड़ा। 1954 में मैला आंचल ने उन्हें रातों-रात हिंदी साहित्य का सितारा बना दिया। 1970 में उन्हें मैला आंचल के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया, जिसे उन्होंने 1975 में आपातकाल के विरोध में लौटा दिया। 11 अप्रैल 1977 को पेप्टिक अल्सर के कारण उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी लेखनी आज भी जीवंत है।

रेणु की रचनाएँ सामाजिक यथार्थ, ग्रामीण जीवन और मानवता की पुकार से भरी थीं। उन्होंने जातिवाद, शोषण, अशिक्षा और भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं को उजागर किया। उनकी लेखनी ने स्वतंत्रता संग्राम और समाज सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे एक लेखक होने के साथ-साथ सजग नागरिक और देशभक्त भी थे।

लेखनी, भाषा-शैली और संवाद: रेणु का साहित्यिक जादू

लेखनी: ग्रामीण भारत की आत्मा

रेणु की लेखनी ग्रामीण भारत का दर्पण थी। उनकी कहानियाँ और उपन्यास—मैला आंचल, तीसरी कसम, परती परिकथा—गाँव की मिट्टी, मेहनत और मानवता की कहानी कहते हैं। उनकी रचनाएँ सामाजिक कुरीतियों पर तीखा तंज करती थीं और विश्व कल्याण की बात करती थीं। मैला आंचल में उन्होंने बिहार के मेरीगंज गाँव के माध्यम से पूरे भारत की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक समस्याओं को उजागर किया। उनकी कहानी तीसरी कसम प्रेम और सामाजिक रूढ़ियों की मार्मिक गाथा है। उनकी लेखनी में हास्य, व्यंग्य और करुणा का अनूठा मिश्रण था, जो पाठकों को बाँध लेता था।

भाषा-शैली: लोक की मिठास, शब्दों का जादू

रेणु की भाषा आंचलिक थी, जिसमें मैथिली, भोजपुरी और खड़ी बोली का मिश्रण था। उनकी शैली चित्रात्मक और लयबद्ध थी, जो ग्रामीण जीवन को जीवंत करती थी। मैला आंचल में वे लिखते हैं: “गिरफ्तार को गिरफ्फ कहते हैं गाँव में।”
यह पंक्ति उनकी आंचलिक शैली की मिठास दर्शाती है। उन्होंने लोकगीत, लोकोक्तियाँ और मुहावरों का खूबसूरत इस्तेमाल किया। उनकी भाषा में तत्सम, तद्भव और विदेशी शब्दों का संतुलन था, जैसे पंचलाइट (पेट्रोमेक्स) और फेनूगिलासी (ग्रामोफोन)। उनकी शैली में हास्य और व्यंग्य की धार थी, जो सामाजिक समस्याओं को उजागर करती थी।

संवाद: गाँव की गलियों की गूँज

रेणु के संवाद यथार्थवादी और जीवंत थे। मैला आंचल में गाँव के पात्रों के संवाद—जैसे तहसीलदार विश्वनाथ और डॉ. प्रशांत का वार्तालाप—सामाजिक रूढ़ियों और प्रेम की गहराई को दर्शाते हैं। तीसरी कसम में हीरामन और हीराबाई के संवाद प्रेम और सामाजिक बंधनों की कसक को जीवंत करते हैं। उनके संवादों में हास्य, करुणा और तंज का मिश्रण था, जो पाठकों को गाँव की गलियों में ले जाता था।

सामाजिक समस्याओं का चित्रण: विश्व कल्याण की पुकार

रेणु की रचनाएँ समाज का आईना थीं। उन्होंने जातिवाद, अशिक्षा, शोषण और भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं को बेबाकी से उजागर किया। मैला आंचल में मेरीगंज गाँव के माध्यम से उन्होंने भारतीय ग्रामीण समाज की तस्वीर खींची—जातिवाद, मठों का पाखंड, और पूँजीवाद की चपेट में फँसा गाँव। उनकी कहानी पंचलाइट में ग्रामीण समाज की एकता और अंधविश्वास का चित्रण है। उनकी लेखनी में दलितों, किसानों और मज़दूरों की आवाज़ थी, जो स्वतंत्रता के बाद भी गुलामी की जंजीरों में जकड़े थे। रेणु की रचनाएँ विश्व कल्याण और नागरिक उत्थान की पुकार थीं, जो सामाजिक समरसता और न्याय की वकालत करती थीं।

पाँच प्रमुख रचनाएँ और उदाहरण

रेणु की रचनाएँ हिंदी साहित्य की अनमोल धरोहर हैं। उनकी प्रमुख कृतियों में मैला आंचल, परती परिकथा, तीसरी कसम, पंचलाइट और ऋणजल धनजल शामिल हैं। आइए, इन पाँच रचनाओं के चार-चार उदाहरणों के ज़रिए उनकी लेखनी की गहराई को समझें।

1. मैला आंचल (1954)

विषय: बिहार के मेरीगंज गाँव में सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक समस्याएँ।

  • “गिरफ्तार को गिरफ्फ कहते हैं गाँव में।” – आंचलिक शब्दों की मिठास।

  • “मेरीगंज का मलेरिया सेंटर, जहाँ डॉ. प्रशांत गाँव की सेवा करता है।” – सामाजिक सेवा का चित्रण।

  • “जातिवाद की जड़ें, गाँव को बाँटती हैं।” – सामाजिक कुरीतियों पर तंज।

  • “कमला और प्रशांत का प्रेम, सामाजिक बंधनों से जूझता है।” – प्रेम और रूढ़ियाँ।
    प्रासंगिकता: यह उपन्यास ग्रामीण भारत की समस्याओं को दर्शाता है, जो आज भी प्रासंगिक हैं।

2. परती परिकथा (1957)

विषय: जमींदारी प्रथा का अंत और ग्रामीण नेताओं की स्वार्थपरायणता।

  • “परानपुर में नया बंदोबस्त, गाँव को बदलता है।” – सामाजिक परिवर्तन।

  • “नेताओं की धाँधली, गाँव का भविष्य दाँव पर।” – भ्रष्टाचार का चित्रण।

  • “भूमिदान का सपना, स्वार्थ में डूबता है।” – आदर्शों का पतन।

  • “गाँव की एकता, प्रगति का आधार।” – सामाजिक समरसता।
    प्रासंगिकता: यह उपन्यास भ्रष्टाचार और नेतृत्व की विफलता को दर्शाता है।

3. तीसरी कसम (उर्फ मारे गए गुलफाम, 1950)

विषय: प्रेम और सामाजिक रूढ़ियों की मार्मिक गाथा।

  • “हीरामन का बैलगाड़ी पर गीत, प्रेम की शुरुआत।” – प्रेम का चित्रण।

  • “हीराबाई की कसक, समाज की रूढ़ियों से टकराती है।” – सामाजिक बंधन।

  • “प्रेम की तीसरी कसम, टूटने को बाध्य।” – दुखांत प्रेम।

  • “हीरामन की सादगी, दिल को छू लेती है।” – ग्रामीण सादगी।
    प्रासंगिकता: यह कहानी प्रेम और सामाजिक दबाव को दर्शाती है।

4. पंचलाइट (1957)

विषय: ग्रामीण एकता और अंधविश्वास का चित्रण।

  • “पंचलाइट की रोशनी, गाँव को एकजुट करती है।” – सामुदायिक एकता।

  • “अंधविश्वास की छाया, गाँव को बाँटती है।” – सामाजिक कुरीतियाँ।

  • “पंचायत की बातचीत, हास्य और तंज से भरी।” – यथार्थवादी संवाद।

  • “गाँव की सादगी, रोशनी का प्रतीक।” – ग्रामीण जीवन।
    प्रासंगिकता: यह कहानी सामुदायिक एकता और अंधविश्वास की प्रासंगिकता दर्शाती है।

5. ऋणजल धनजल (1960)

विषय: संस्मरणों में ग्रामीण जीवन और सामाजिक यथार्थ।

  • “गाँव की माटी, मेहनत की खुशबू।” – ग्रामीण जीवन का चित्रण।

  • “सामाजिक बंधन, इंसानियत को चुनौती देते हैं।” – सामाजिक यथार्थ।

  • “लोकगीतों की मिठास, जीवन का आधार।” – सांस्कृतिक गहराई।

  • “गाँव की कहानियाँ, दिल को छूती हैं।” – भावनात्मक संवेदना।
    प्रासंगिकता: यह संस्मरण ग्रामीण जीवन की सादगी और सच्चाई को दर्शाता है।

समाज पर प्रभाव: रेणु की लेखनी का अमर जादू

रेणु की रचनाएँ एक साहित्यिक क्रांति थीं। मैला आंचल ने हिंदी साहित्य में आंचलिक उपन्यास की नींव रखी। तीसरी कसम ने प्रेम और सामाजिक रूढ़ियों की कहानी को सिनेमा के ज़रिए अमर कर दिया। उनकी रचनाओं ने स्वतंत्रता संग्राम में जन-चेतना जगाई और समाज सुधार का मार्ग दिखाया। पंचलाइट ने ग्रामीण एकता को रेखांकित किया। उनकी लेखनी ने दलितों, किसानों और मज़दूरों की आवाज़ को बुलंद किया। आपातकाल के दौरान पद्मश्री लौटाकर उन्होंने सत्ता के दमन के खिलाफ़ आवाज़ उठाई। उनकी रचनाएँ विश्व कल्याण और नागरिक उत्थान की पुकार थीं, जो सामाजिक समरसता और न्याय की वकालत करती थीं।

आज के दौर में फणीश्वरनाथ रेणु क्यों? प्रासंगिकता की बुलंदी

रेणु को पढ़ना आज केवल साहित्यिक आनंद नहीं, बल्कि समाज को समझने और बदलने का एक ज़रिया है। उनकी रचनाएँ सामाजिक असमानता, भ्रष्टाचार और अंधविश्वास जैसे मुद्दों को उजागर करती हैं। डिजिटल युग में उनकी प्रासंगिकता दस बिंदुओं में समझी जा सकती है:

1. ग्रामीण भारत की आवाज़: मैला आंचल ग्रामीण भारत की समस्याओं को दर्शाता है, जो आज भी प्रासंगिक हैं।
2. जातिवाद पर तंज: उनकी रचनाएँ जातिवाद की जड़ों को उजागर करती हैं, जो सामाजिक न्याय के लिए ज़रूरी है।
3. प्रेम की गहराई: तीसरी कसम प्रेम और सामाजिक बंधनों की कसक को दर्शाता है, जो आधुनिक रिश्तों में प्रासंगिक है।
4. सामुदायिक एकता: पंचलाइट सामुदायिक एकता को रेखांकित करता है, जो आज के विभाजनकारी दौर में ज़रूरी है।
5. आंचलिक सौंदर्य: उनकी भाषा-शैली ग्रामीण संस्कृति को जीवंत करती है, जो सांस्कृतिक पहचान के लिए महत्वपूर्ण है।
6. सामाजिक सुधार: उनकी रचनाएँ अशिक्षा और अंधविश्वास के खिलाफ़ पुकार हैं।
7. नैतिकता का पाठ: परती परिकथा भ्रष्टाचार और स्वार्थपरायणता को उजागर करता है।
8. स्वतंत्रता की चेतना: रेणु की लेखनी स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा देती है।
9. साहित्यिक नवीनता: उनकी आंचलिक शैली आज के लेखकों को प्रेरित करती है।
10. मानवता की पुकार: उनकी रचनाएँ करुणा और मानवता की वकालत करती हैं।

रेणु की साहित्यिक दुनिया

  • मैला आंचल: “गिरफ्तार को गिरफ्फ कहते हैं गाँव में।” – आंचलिक शैली।

  • परती परिकथा: “नेताओं की धाँधली, गाँव का भविष्य दाँव पर।” – भ्रष्टाचार का चित्रण।

  • तीसरी कसम: “हीरामन की सादगी, दिल को छू लेती है।” – ग्रामीण सादगी।

  • पंचलाइट: “पंचलाइट की रोशनी, गाँव को एकजुट करती है।” – सामुदायिक एकता।

  • ऋणजल धनजल: “गाँव की माटी, मेहनत की खुशबू।” – ग्रामीण जीवन।

फणीश्वरनाथ रेणु की अमर धुन, साहित्य और समाज का जागरण

चाय की प्याली अब शायद ठंडी पड़ गई होगी, पर फणीश्वरनाथ रेणु के शब्दों की तपिश आपके दिल में अभी भी बरकरार है। उनकी कृतियाँ—मैला आंचल, परती परिकथा, तीसरी कसम, पंचलाइट, ऋणजल धनजल—हिंदी साहित्य का अनमोल खजाना हैं। रेणु को पढ़ना जैसे गाँव की पगडंडियों, मेहनत की महक और इंसानियत की सैर करना है। यह एक ऐसा अनुभव है, जो हमें समाज की हकीकत, जिम्मेदारियों और सपनों से जोड़ता है।

आज, जब भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता और असमानता समाज को कमज़ोर कर रहे हैं, रेणु की लेखनी एक मशाल है। वे हमें सिखाते हैं कि साहित्य केवल शब्द नहीं, बल्कि समाज को बदलने का हथियार है। उनकी रचनाएँ साहस, सत्य और मानवता की राह दिखाती हैं। तो, चाय की अगली चुस्की लें और फणीश्वरनाथ रेणु की अमर दुनिया में उतरें। उनकी हर पंक्ति एक तूफान है जो पाखंड को उखाड़ फेंकता है, और हर शब्द एक दीपक जो विवेक को प्रज्वलित करता है।