कोसी की लहरों का राग

CHAIFRY POT

Chaifry

6/24/20251 min read

नेपाल के हिमालय की बर्फीली चोटियों से जन्म लेती है कोसी नदी, जो अपने चंचल स्वभाव के साथ भारत के मैदानों में उतरती है। बिहार के मिथिला क्षेत्र में यह नदी एक जीवनरेखा है, पर इसे "बिहार का शोक" भी कहा जाता है, क्योंकि इसकी बाढ़ें गांवों को निगल लेती हैं, खेतों को बंजर कर देती हैं, और जीवन को उथल-पुथल में डाल देती हैं। फिर भी, कोसी सिर्फ विनाश की प्रतीक नहीं; यह मिथिला की आत्मा है, जिसकी लहरों में लोककथाएं थिरकती हैं, और जिसके किनारों पर जीवन नाचता है। कोसी की लहरें एक अलौकिक संगीत रचती हैं, जो मिथिला के गांवों की धड़कन बन जाती हैं। यह नदी मिट्टी की सोंधी गंध, खेतों की हरियाली, और मेलों की रौनक को अपनी गोद में समेटे हुए है।

मिथिला के गांवों में सुबह का आलम कुछ और ही होता है। कोसी के किनारे बसे ये गांव सूरज की पहली किरणों के साथ जागते हैं, जब नदी की लहरें किनारों से टकराकर एक मधुर धुन छेड़ती हैं। खेतों में गन्ने की फसल हवा में लहराती है, और धान की बालियां सूरज की रोशनी में चमकती हैं। औरतें नदी के घाट पर मटके लेकर पानी भरने जाती हैं, और उनके कंगनों की खनक नदी की लहरों के साथ ताल मिलाती है। बच्चे नदी के किनारे मिट्टी के छोटे-छोटे घर बनाते हैं, और उनकी हंसी हवा में तैरती है। कोसी की लहरें इन हंसियों को सुनती हैं, मानो वह गांव की हर खुशी को अपनी गोद में थाम लेती हो।

मिथिला की संस्कृति कोसी के बिना अधूरी है। नदी के किनारे बने छोटे-छोटे मंदिरों में सुबह की आरती की घंटियां गूंजती हैं, और भक्त नदी को मां मानकर उसकी पूजा करते हैं। कोसी की लहरें इन प्रार्थनाओं को सुनती हैं, और हवा में भक्ति का राग बहता है। मिथिला की लोककथाओं में कोसी एक देवी है, जो कभी अपनी संतानों को प्यार से गले लगाती है, तो कभी अपने रौद्र रूप में सबक सिखाती है। इन लोककथाओं में नदी के किनारे बसे गांवों की जिंदगी की हर धड़कन बसती है—चाहे वह खेतों में मेहनत करते किसानों की पसीने की बूंदें हों, या मेलों में गूंजती ढोल की थाप।

मिथिला के मेलों में कोसी की चंचलता साकार हो उठती है। मेलों की रौनक में रंग-बिरंगी चूड़ियां, मिट्टी के खिलौने, और मधुबनी चित्रों की कारीगरी हर आंख को लुभाती है। ढोल की थाप पर युवा नाचते हैं, और औरतें मिथिला के लोकगीत गुनगुनाती हैं, जिनमें कोसी की लहरों की कहानियां बुनती हैं। मेलों में भुने चने की सोंधी खुशबू, जलेबी की मिठास, और चटपटे चाट के स्वाद हवा में घुलते हैं। बच्चे गुब्बारों के पीछे दौड़ते हैं, और बुजुर्ग चौपाल पर बैठकर पुराने दिनों की बातें करते हैं। कोसी का किनारा इन मेलों का गवाह बनता है, जहां नदी की लहरें उत्सव की उमंग को और बढ़ा देती हैं।

मिथिला के त्योहार कोसी की लहरों के बिना फीके हैं। छठ पूजा में नदी का किनारा भक्तों की भीड़ से भर जाता है। सूरज को अर्घ्य देने के लिए औरतें कोसी की लहरों में खड़ी होती हैं, और उनके गीत हवा में तैरते हैं। दीये नदी की सतह पर तैरते हैं, और उनकी रोशनी कोसी की लहरों पर नाचती है, मानो नदी स्वयं इस भक्ति में डूब गई हो। होली में गांव रंगों से सराबोर हो जाते हैं, और कोसी के किनारे बच्चे एक-दूसरे पर रंग फेंकते हैं, उनकी हंसी नदी की लहरों के साथ मिलती है। मकर संक्रांति में तिल-गुड़ की मिठास हवा में घुलती है, और गांववाले कोसी के किनारे पतंग उड़ाते हैं, जिनके रंग आसमान को और रंगीन बना देते हैं।

मिथिला की कला कोसी की प्रेरणा से जीवंत है। मधुबनी चित्रकला में नदी की लहरें, मछलियां, और कमल के फूल उकेरे जाते हैं। गांव की दीवारों पर बनी ये पेंटिंग्स कोसी की चंचलता को दर्शाती हैं, और हर रंग में नदी की कहानियां बसती हैं। औरतें अपने आंगनों में मधुबनी की रेखाएं खींचती हैं, और उनके ब्रश में कोसी की लय थिरकती है। ये चित्र गांव की आत्मा को उकेरते हैं, जहां हर रेखा में मिथिला की संस्कृति और कोसी की ऊर्जा समाई है।

कोसी की चंचलता गांव की जिंदगी में हर पल झलकती है। सुबह के खेतों में किसान हल चलाते हैं, और उनकी मेहनत कोसी की लहरों के साथ ताल मिलाती है। दोपहर में बच्चे नदी के किनारे खेलते हैं, और उनकी हंसी हवा में तैरती है। संध्या में गांववाले कोसी के घाट पर इकट्ठा होते हैं, और दीये जलाकर नदी को अपनी प्रार्थनाएं सौंपते हैं। कोसी की लहरें इन प्रार्थनाओं को सुनती हैं, और हवा में भक्ति का राग बहता है। नदी का किनारा वह जगह है, जहां गांववाले अपने सुख-दुख बांटते हैं। घाट की सीढ़ियों पर सूरज की पहली किरण पानी को सुनहरा करती है, और हर शाम दीयों की रोशनी नदी की लहरों पर तैरती है।

मिथिला के गांवों में कोसी की लहरें हर घर की धड़कन हैं। मिट्टी के घरों में चूल्हे जलते हैं, और मक्के की रोटी की खुशबू हवा में घुलती है। औरतें आंगनों में तुलसी को जल चढ़ाती हैं, और उनके गीतों में कोसी की लय बसती है। बच्चे स्कूल जाते हैं, और उनकी किताबों में मिथिला की संस्कृति की झलक होती है। बुजुर्ग चौपाल पर बैठकर पुराने दिनों की बातें करते हैं, और उनकी आंखों में कोसी की लहरों की चमक झलकती है। कोसी का किनारा वह जगह है, जहां प्रेमी अपने सपनों को साझा करते हैं, और बुजुर्ग अपनी जवानी की यादों में खो जाते हैं।