उत्तर प्रदेश कौशल विकास मिशन: कागज़ों पर दौड़, ज़मीन पर ठहराव
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Chaifry
6/23/20251 min read
उत्तर प्रदेश, भारत का सबसे अधिक आबादी वाला राज्य, अपनी विशाल युवा आबादी के साथ आर्थिक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। हालांकि, इस जनसांख्यिकीय लाभ को भुनाने के लिए, युवाओं को उद्योग-प्रासंगिक कौशल से लैस करना आवश्यक है। उत्तर प्रदेश कौशल विकास मिशन (UPSDM), जिसे 2013 में शुरू किया गया था, का उद्देश्य 14-35 वर्ष की आयु के युवाओं को रोजगार योग्य बनाने के लिए प्रशिक्षण प्रदान करना है। इसके बावजूद, 2025 तक, UPSDM ने उत्तर प्रदेश की वर्तमान जरूरतों को पूरा करने में कई कमियां दिखाई हैं, जिसके परिणामस्वरूप बेरोजगारी की दर अभी भी चिंताजनक है और युवा कौशल विकास से भटक रहे हैं। यह लेख UPSDM की विफलताओं, बेरोजगारी की स्थिति, ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंच की कमी, और भारत में कौशल सर्टिफिकेट के बाद नौकरी की गारंटी न होने के कारणों का विस्तृत विश्लेषण करता है।
उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी की स्थिति
2023-24 के पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के अनुसार, उत्तर प्रदेश की बेरोजगारी दर 4.1% थी, जो राष्ट्रीय औसत 4.9% से कम है (PLFS Report). यह 2015-16 की 5.8% की दर से सुधार दर्शाता है, जब राज्य में बेरोजगारी राष्ट्रीय औसत 3.7% से अधिक थी। हालांकि, यह सुधार पर्याप्त नहीं है, विशेष रूप से युवा बेरोजगारी के संदर्भ में। 2015-16 में, 18-29 वर्ष की आयु के युवाओं की बेरोजगारी दर 14.8% थी, जो राष्ट्रीय औसत 10.8% से काफी अधिक थी। हाल के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर, 50% स्नातक और 44% स्नातकोत्तर कम कौशल वाली नौकरियों में हैं, जो उत्तर प्रदेश में भी लागू हो सकता है (Economic Survey).
2025 में, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने दावा किया कि बेरोजगारी की दर 2.4% तक गिर गई है (Times of India). हालांकि, यह दावा PLFS जैसे विश्वसनीय स्रोतों से मेल नहीं खाता, और इसलिए इसे सावधानी से देखा जाना चाहिए। PLFS 2022-23 के अनुसार, श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) 56.9% थी, जिसमें पुरुषों की LFPR 82.2% और महिलाओं की केवल 32.1% थी। इसी तरह, श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR) पुरुषों के लिए 79.8% और महिलाओं के लिए 31.5% था, जो महिलाओं की कम रोजगार भागीदारी और बेरोजगारी की समस्या को दर्शाता है।
UPSDM का गठन और प्रगति
UPSDM की स्थापना 21 दिसंबर, 2013 को हुई थी, और यह उत्तर प्रदेश सरकार के व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास विभाग के तहत एक सोसाइटी के रूप में पंजीकृत है। इसका मुख्य उद्देश्य 14-35 वर्ष की आयु के सभी पात्र युवाओं को उनके पसंदीदा ट्रेडों में प्रशिक्षित करना है, यह सुनिश्चित करते हुए कि वे उद्योग की जरूरतों के अनुरूप कौशल अर्जित करें। मिशन विभिन्न राज्य विभागों, जैसे ग्रामीण विकास, शहरी विकास, श्रम, और अल्पसंख्यक कल्याण, के प्रयासों को एकीकृत करता है, और केंद्रीय योजनाओं का लाभ उठाता है।
2025 तक, UPSDM ने निम्नलिखित प्रगति की है:
प्रशिक्षण भागीदार: 910
प्रशिक्षण केंद्र: 8,669
क्षेत्र: 39
पाठ्यक्रम: 1,385
नामांकित युवा: 10,52,255
प्रशिक्षणाधीन युवा: 3,83,618
प्रशिक्षित युवा: 6,47,992
प्लेसमेंट प्राप्त युवा: 4,414
ये आंकड़े UPSDM की विस्तृत पहुंच को दर्शाते हैं। मिशन ने परियोजना प्रवीण (Project Praveen), SANKALP (SANKALP), और प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना (PM Vishwakarma) जैसे पहल शुरू किए हैं। परियोजना प्रवीण ने 61,000 से अधिक छात्रों को प्रशिक्षित किया, जबकि SANKALP ने 63,000 छात्रों को सशक्त किया।
ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंच की कमी
UPSDM का एक प्रमुख दोष यह है कि यह ग्रामीण क्षेत्रों में जरूरतमंद समुदायों तक प्रभावी ढंग से नहीं पहुंच पाया है। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशिक्षण केंद्रों की कमी, जागरूकता का अभाव, और बुनियादी ढांचे की अपर्याप्तता के कारण कई युवा प्रशिक्षण से वंचित रह जाते हैं। उदाहरण के लिए, ग्रामीण क्षेत्रों में केवल सीमित संख्या में ITI और प्रशिक्षण केंद्र उपलब्ध हैं, और इन तक पहुंचने के लिए परिवहन और आर्थिक संसाधनों की कमी एक बड़ी बाधा है। इसके अलावा, ग्रामीण युवाओं, विशेष रूप से महिलाओं और कमजोर समूहों, को सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जो उनकी भागीदारी को और सीमित करता है। PLFS 2022-23 के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में LFPR 63.7% थी, लेकिन यह मुख्य रूप से पुरुषों द्वारा संचालित थी, जबकि महिलाओं की भागीदारी केवल 32.1% थी।
UPSDM की प्रभावकारिता
हालांकि UPSDM ने कई युवाओं को प्रशिक्षित किया है, लेकिन इसकी प्रभावकारिता सीमित रही है। 2015-16 में, ITI और पॉलीटेक्निक के केवल 30% से कम स्नातकों को रोजगार मिला, जो प्रशिक्षण की कम प्रभावकारिता को दर्शाता है (Skill Gap Analysis). राष्ट्रीय स्तर पर, PMKVY ने 31.55 मिलियन उम्मीदवारों को प्रशिक्षित किया, लेकिन केवल 18% को रोजगार मिला (Skill Development). उत्तर प्रदेश में भी यही स्थिति होने की संभावना है, क्योंकि केवल 4,414 प्रशिक्षित युवाओं को नौकरी मिली।
इसके अलावा, केवल 4.4% शिक्षित कार्यबल को औपचारिक कौशल प्रशिक्षण प्राप्त है, जो एक बड़े कौशल अंतर को दर्शाता है। 65% कंपनियां कौशल अंतर की शिकायत करती हैं, जो नवाचार और स्केलिंग में बाधा डालता है।
UPSDM की विफलताओं के कारण
UPSDM की विफलताओं के कई कारण हैं:
कम प्लेसमेंट दर: प्रशिक्षित युवाओं में से केवल एक छोटा हिस्सा ही रोजगार प्राप्त करता है। उदाहरण के लिए, 6,47,992 प्रशिक्षित युवाओं में से केवल 4,414 को नौकरी मिली, जो दर्शाता है कि प्रशिक्षण और रोजगार के बीच एक बड़ा अंतर है।
प्रशिक्षण की गुणवत्ता: ITI और अन्य प्रशिक्षण केंद्रों में प्रशिक्षण की गुणवत्ता अक्सर कम होती है। बुनियादी ढांचे की कमी और पुराने पाठ्यक्रम उद्योग की जरूरतों को पूरा नहीं करते।
उद्योग-शैक्षिक लिंकेज की कमी: प्रशिक्षण पाठ्यक्रम उद्योग की मांगों के साथ संरेखित नहीं हैं। AI, साइबरसुरक्षा, और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे उभरते क्षेत्रों में प्रशिक्षण की कमी है।
जागरूकता की कमी: कई युवा UPSDM के अवसरों से अनजान हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में जानकारी का प्रसार सीमित है।
सामाजिक पूर्वाग्रह: व्यावसायिक प्रशिक्षण को अक्सर पारंपरिक उच्च शिक्षा से कम महत्व दिया जाता है, जिसके कारण युवा इसे अपनाने में हिचकिचाते हैं।
महिलाओं की कम भागीदारी: PLFS 2022-23 के अनुसार, महिलाओं की LFPR केवल 32.1% थी, जो सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाओं को दर्शाता है।
युवा क्यों कौशल विकास से भटक रहे हैं?
युवा कई कारणों से कौशल विकास से दूर हो रहे हैं:
नौकरी की अनिश्चितता: कम प्लेसमेंट दर के कारण, युवा प्रशिक्षण को समय की बर्बादी मानते हैं।
उद्योग मेल की कमी: प्रशिक्षण पाठ्यक्रम पुराने हैं और उभरते क्षेत्रों जैसे AI और ग्रीन जॉब्स को कवर नहीं करते।
सामाजिक दबाव: पारंपरिक डिग्री को अधिक महत्व दिया जाता है, जिसके कारण युवा व्यावसायिक प्रशिक्षण से बचते हैं।
आर्थिक दबाव: कई युवा तत्काल आय के लिए कम कुशल नौकरियों में चले जाते हैं।
जागरूकता की कमी: ग्रामीण और कमजोर समूहों में UPSDM के बारे में जानकारी नहीं पहुंचती।
सर्टिफिकेट और नौकरी की गारंटी की कमी
भारत में कौशल सर्टिफिकेट नौकरी की गारंटी नहीं देते, क्योंकि कई कारणों से प्रशिक्षण और रोजगार के बीच एक अंतर है। पहला, कई प्रशिक्षण कार्यक्रम उद्योग की वास्तविक जरूरतों के साथ संरेखित नहीं हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रशिक्षित युवा उन कौशलों में कमी रखते हैं जो नियोक्ता चाहते हैं। दूसरा, कुछ प्रशिक्षण संस्थानों द्वारा प्रदान की जाने वाली प्रशिक्षण की गुणवत्ता निम्न होती है, जिसके कारण स्नातक कार्यबल के लिए पर्याप्त रूप से तैयार नहीं होते। तीसरा, राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) जैसे संगठनों द्वारा जारी सर्टिफिकेट के लिए मानकीकृत मूल्यांकन प्रक्रिया या गुणवत्ता आश्वासन प्रणाली की कमी है, जिसके कारण इन सर्टिफिकेट का मूल्य भिन्न हो सकता है (NSDC Certificates). चौथा, नौकरी बाजार में उच्च प्रतिस्पर्धा है, और सर्टिफिकेट धारकों को अन्य समान या बेहतर योग्यता वाले उम्मीदवारों से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है। पांचवां, कई कौशल विकास कार्यक्रम नौकरी प्लेसमेंट सहायता प्रदान नहीं करते, जिसके कारण स्नातकों को स्वयं नौकरी खोजनी पड़ती है। छठा, व्यावसायिक प्रशिक्षण से जुड़ा सामाजिक कलंक भी रोजगार प्राप्ति को प्रभावित करता है। अंत में, आर्थिक स्थिति नौकरी की उपलब्धता को प्रभावित करती है, और कुशल होने के बावजूद पर्याप्त नौकरियां उपलब्ध नहीं हो सकतीं (Vocational Skills)।
सुधार के लिए सुझाव
UPSDM को प्रभावी बनाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
उद्योग समन्वय: सेक्टर स्किल काउंसिल्स (SSCs) के साथ मिलकर पाठ्यक्रम को उद्योग की जरूरतों के अनुरूप बनाना चाहिए।
प्रशिक्षण की गुणवत्ता: ITI और प्रशिक्षण केंद्रों में बुनियादी ढांचे और शिक्षकों की गुणवत्ता में सुधार करना चाहिए।
जागरूकता अभियान: ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाए जाएं।
अप्रेंटिसशिप प्रोग्राम: नेशनल अप्रेंटिसशिप प्रमोशन स्कीम (NAPS) को बढ़ावा देना चाहिए, जिसमें 2024-25 में 2,77,036 अप्रेंटिस शामिल हुए (Skill Development).
महिलाओं और कमजोर समूहों के लिए प्रावधान: लचीले प्रशिक्षण समय और प्रोत्साहन के साथ महिलाओं और कमजोर समूहों की भागीदारी बढ़ानी चाहिए।
डिजिटल स्किलिंग: स्किल इंडिया डिजिटल हब, जिसमें 60 लाख से अधिक शिक्षार्थी पंजीकृत हैं, को बढ़ावा देना चाहिए (Skill India Digital).